आज थोड़ा व्यस्त हूं, इसलिए कुदरतनामा में कोई लंबा पोस्ट नहीं रहेगा। यदि इस शनि-रवि को आपके पास खाली समय हो, तो पंकज अवधिया के ब्लोग मेरी प्रतिक्रिया को अवश्य देख आएं। बहुत ही उम्दा ब्लोग है, जंगल संस्मरणों से भरा हुआ। अवधिया जी कृषि वैज्ञानिक हैं और वानस्पतिक जैव-विविधता का संग्रह कर रहे हैं। इस सिलसिले में उन्हें जंगलों की खूब खाक छाननी पड़ती है। इसके दौरान हुए अनुभवों और घटनाओं का बहुत ही रोमांचक वर्णन वे अपने इस ब्लोग में दे रहे हैं। मुझे तो इन्हें पढ़कर जिम कोर्बट की टेंपल टाइगर वाली किताब याद आती है।
बानगी के तौर पर उनके एक पोस्ट का यहां जिक्र करता हूं। अवधिया जी को जंगल के एक पुजारी ने बताया कि घने जंगल में भालू से मुठभेड़ हो जाए तो बकरी की आवाज निकालने से भालू इतना कन्फ्यूज हो जाता है कि यह आदमी है या बकरी कि वह बिना हमला किए चला जाता है! पुजारी से मिलकर लौटते हुए अवधिया जी का सामना एक भालू से हुआ भी। पुजारी की बात याद करके उन्होंने उनका बताया नुस्खा आजमाकर देखा। तब क्या हुआ?
क्या मैं ही सब कुछ बता दूं? जाइए, उनके ही ब्लोग पर इस लिंक को पकड़कर पहुंचिए और वहीं पढ़ लीजिए कि क्या हुआ जब अवधिया जी ने भालू के सामने निकाली में-में की आवाज!
Friday, June 12, 2009
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1 comments:
प्रिय बन्धु,
जय हिंद
हमने आपका आदेश माना और पंकज जी का ब्लॉग पढ़ लिया ,आपको धन्यवाद
अगले आदेश की प्रतीक्षा रहेगी
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