हुदहुद पक्षी के बारे में मेरे पिछले पोस्ट पर श्री अर्विंद मिश्रा जी ने टिप्पणी की थी कि यह पक्षी इस्लाम धर्म में पवित्र माना जाता है। यह मेरे लिए नई जानकारी थी, और इसके बारे में अधिक जानने के लिए मैंने थोड़ी गूगलिंग की। इससे मुझे हुदहुद पक्षी के बारे में एक रोचक कथा पढ़ने को मिली, जिसे मैं यहां दे रहा हूं। आपको भी अच्छा लगेगा, उसे पढ़ना।
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पैगंबर सुलैमान के पास बहुद बड़ी सेना थी जिसमें मनुष्य, जिन्न और पशु-पक्षी शामिल थे। एक दिन वे अपनी सेना का निरीक्षण कर रहे थे। उन्होंने अपने पक्षी सैनिकों की ओर देखकर पूछा, “हुदहुद कहीं नहीं दिख रहा, वह कहां गया।"
सेना को जब भी पानी की आवश्यकता होती थी, तब यह काम हुदहुद को ही दिया जाता था। वह रेगिस्तान में कहां पानी है, इसका पता लगाकर आता था। उस दिन हुदहुद सुलैमान से पूछे बगैर कहीं चला गया था। इसलिए सुलैमान ने मन बना लिया कि यदि वह अपनी गैरहाजिरी के लिए अच्छा कारण न बता सका, तो मैं उसे कड़ी सजा दूंगा।
जब हुदहुद लौट आया, तो उसने सुलैमान को बताया कि वह कहां गया था और उसने क्या देखा, “...मैं शीबा के देश से आ रहा हूं, और मैं आपको वहां की अत्यंत रोचक वृत्तांत सुनाऊंगा। वहां मैंने देखा कि एक औरत लोगों पर राज कर रही है। उसे बहुत से वरदान प्राप्त हैं, उसका सिंहासन बहुत ही भव्य है। मैंने देखा कि वह तथा उसकी प्रजा अल्लाह को नहीं बल्की सूर्य की पूजा करते हैं।"
जब सुलैमान ने रानी बिलकिस और उसके राज्य यमन के बारे में यह बात सुनी, तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। उन्हें यह जानने का कौतूहल हुआ कि हुदहुद ने जो कहा है वह सही है या उसने अपना बचाव करने के लिए झूठ बोला है। उन्होंने उसी वक्त रानी बिलकिस को एक पत्र लिखा, जिसमें उनसे आग्रह किया कि वे अल्लाह को अपने ईश्वर के रूप में कबूल करें और सूर्य की पूजा करना बंद करें। फिर उन्होंने हुदहुद को वह पत्र थमाते हुए कहा कि जाओ और रानी का उत्तर लेकर आओ।
जब रानी बिलकिस ने वह पत्र पढ़ा तो उन्हें समझ में नहीं आया कि क्या करें। उन्होंने अपने मंत्रियों और सेनापतियों की सलाह ली। सेनिपतियों ने कहा कि वे जो भी निर्णय लेंगी उसका वे अनुसरण करेंगे। रानी बिलकिस जानना चाहती थीं कि सुलैमान कोई साधारण राजा है जो उसकी दौलत हथियाना चाहता है या उनमें कोई विशिष्ट बात है। इसलिए उन्होंने सुलैमान की परीक्षा लेने का निर्णय लिया।
रानी बिलकिस ने बहुत सारा सोना, चांदी, रत्न, मोती आदि कीमती सामान तोहफे के रूप में सुलैमान को भिजवाया।
जब सुलैमान ने इन्हें देखा, तो बोले, "अरे, क्या तुम दौलत देकर मेरी मदद करोगे? अल्लाह ने मुझे जो सब दिया है, वह इस तुच्छ तोहफे से कहीं बेहतर है। ये तोहफे तुम्हारी आंखों को बेशकीमती लग सकते हैं, मुझे नहीं।”
और उन्होंने उन सब तोहफों को वापिस भेज दिया।
रानी बिलकिस के भेजे हुए लोग तोहफे के साथ शीबा लौट आए। उन्होंने रानी को पैगंबर सुलैमान के भव्य देश में उन्होंने जो कुछ देखा था, उसका वर्णन सुनाया।
तब रानी बिलकिस को मालूम हुआ कि पैंगंबर सुलैमान सचमुच एक महान और धर्मानुरागी व्यक्ति हैं, और अल्लाह ने उन्हें विशेष अधिकार और शक्तियां प्रदान की हैं। रानी ने यह भी निश्चय किया कि वह स्वयं जाकर सुलैमन के देश को देख आएगी।
जब सुलैमान को उसके इरादे के बारे में पता चला, तो उन्होंने तय किया कि मैं रानी को अल्लाह से मुझे मिली हुई अद्भुत शक्तियां दिखाऊंगा, ताकि उसे यकीन हो जाए कि एक ही ईश्वर होता है।
उन्होंने कहा, “हे महान योद्धाओ, तुममें से कौन जाकर रानी के आने से पहले मुझे शीबा का भव्य सिंहासन लाकर देगा?”
एक जिन्न इसके लिए राजी हुआ, पर सुलैमान उसे आदेश दे, इसके पहले ही उनके एक मंत्री, असिफ बेन बरखिया, ने कहा, “मैं यह कार्यभार स्वीकारता हूं, और पलक झपकते ही उस सिंहासन को यहां लाकर रख दूंगा।”
और सचमुच ही, पैगंबर सुलैमान अपनी आंखें झपकते, इसके पहले ही शीबा का सिंहासन उनके सामने था, हालांकि शीबा का देश बहुत दूर था, - रानी बिलकिस यमन की शासक थीं, और पैगंबर सुलैमान फिलिस्तीन के।
जब सुलैमान ने यह करिश्मा देखा, तो उन्होंने अल्लाह को खूब धन्यवाद दिया।
उसके बाद उन्होंने आदेश दिया कि रानी बिलकिस के स्वागत के लिए एक नया महल बनाया जाए, जिसकी फर्श कांच की हो। यह फर्श पानी के एक तालाब के ऊपर बने, ताकि जब कोई व्यक्ति उस पर चले, तो ऐसा लगे कि वह पानी पर चल रहा है।
जब रानी बिलकिस आईं, तो उन्हें इसी महल में ले जाया गया। जब उसके विशाल द्वारों से होकर वे अंदर गईं, उन्हें सामने एक बड़ा तालाब दिखा। उन्होंने अपने लिबास को थोड़ा ऊपर उठा लिया ताकि उस तालाब पर से जाते हुए वह न भीगे, और डरते-डरते उन्होंने कांच की फर्श की ओर पैर बढ़ाया।
पैगंबर सुलैमान यह सब देख रहे थे। उन्होंने मुस्कुराकर कहा, इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, आप बिलकुल भीगेंगी नहीं। तब रानी बिल्किस ने महल में कदम रखा।
रानी बिल्किस एक बुद्धिमान महिला थीं। वे तुरंत समझ गईं कि पैगंबर सुलैमान उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि सूर्य की उपासना करके वह गलती कर रही हैं, क्योंकि सूर्य से भी कहीं शक्तिशाली अल्लाह की उपासना करना ज्यादा उचित है।
उन्होंने तुरंत अपनी गलती कबूल कर ली और सुलैमान को देखते हुए कहा, “मैं अल्लाह के पैगंबर सुलैमान के साथ दुनिया के बादशाह अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण करती हूं।”
Monday, June 1, 2009
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1 comments:
MashaAllah bahot khub
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