निस्संतान दंपति बच्चे गोद लेते हैं। पर कर्णाटक की रहनेवाली थिमक्का ने बरगद के पेड़ गोद लिए। वह भी एक-दो नहीं पूरे दो सौ चौरासी।
यह आज से पचास साल पहले की बात है। थिमक्का और उसके पति बिक्कालू के कोई बच्चे नहीं थे।
उन पर सब ताने कसते। आखिर तंग आकर थिमक्का ने सोचा, क्यों न बरगद के पेड़ लगाऊं, उन्हें अपने बच्चों की तरह पालूं? बिक्कालू को भी बात पसंद आ आई। बस, लग गए दोनों पति-पत्नी बरगद उगाने। सालों तक उन्होंने इन वृक्ष-संतानों को अपने हाथों से पानी-खाद दिया। उनको जानवरों से बचाया। धीरे-धीरे उनका प्यार रंग लाने लगा।
आज ये पेड़ सूखी, धूल-भरी सड़कों को हरा-भरा कर रहे हैं। हजारों चिड़ियों ने उनमें घोंसले बनाए हैं। पेड़ों की कीमत पच्चासी करोड़ रुपए हो गई है। पर उनका असली मूल्य तो थिमक्का ही जानती है। वह कहती है. "इन पेड़ों ने मेरी सूनी गोद भर दी है। उनकी मैं क्या कीमत लगाऊं? कोई अपने बच्चों की कीमत लगाता है भला?"
Wednesday, June 3, 2009
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1 comments:
बहुत ही सुन्दर
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