Sunday, August 9, 2009

बस्तीवालों से समझौता

विकासशील देशों के सभी भागों में अनधिकृत बस्तियां एक गंभीर समस्या हैं। कई बार इन्हें सरकारों द्वारा जबरन हटाया जाता है, जिससे काफी सामाजिक तनाव पैदा होता है।

इस समस्या का एक संभव समाधान थाइलैंड के बैंकोक शहर के अनुभव से प्राप्त होता है। इस शहर के अधिकांश उत्कृष्ठ जमीन पर गरीब तबके के लोगों की बस्तियां हैं। 1985-86 में सड़कों को चौड़ा करने, नई इमारतें बनाने व अन्य विकास कार्यों के लिए इनमें से 5,000 परिवारों को जबरदस्ती हटाया गया।

इससे घबराकर अनेक बस्तियों के निवासियों ने अपने संगठन खड़े कर लिए हैं, जो विकास परियोजनाओं के अधिकारियों से बातचीत करके उनकी बस्तियों द्वारा घेरी हुई जमीन पर इन परियोजनाओं के लिए जगह देने का समझौता करते हैं। इस समझौते के तहत बस्तियों के परिवारों को परियोजना के बाद बची हुई जमीन में नई आवासीय कोलनियां बनाने और उनमें मकान मिलने का प्रावधान रहता है।

अब तक बैंकोक में इस प्रकार के पांच समझौते हो चुके हैं। सबसे प्रमुख क्लोंक टोइ नामक स्थान पर हुआ, जहां पोर्ट अथोरिटी ने 1,300 परिवारों के रहने के लिए जमीन का एक बड़ा टुकड़ा दिया। इन परिवारों ने एक नया कंटेनर पोर्ट बनाने के लिए जमीन खाली कर दी थी।

चूंकि बस्तियों को जबर्दस्ती उजाड़ने से काफी तनाव उत्पन्न होता है, और उसका राजनीतिक दृष्टि से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, अब इस प्रकार के समझौते बैंकोक में अधिक लोकप्रिय होते जा रहे हैं।

भारत भी एक घना बसा देश है और शहरों में गंदी बस्तियों में रहनेवालों की तादाद काफी ज्यादा है। इनमें से अधिकांश बस्तियां रेल पटरियों, पुलों, सड़कों आदि के निकट सार्वजनिक जमीन पर पनपी हैं। इन्हें विकास कार्यों के नाम पर कभी भी उजाड़ा जा सकता है, और पुलिसकर्मी आदि इन्हें हफ्ते के लिए शोषण करते रहते हैं। ऐसे में यदि ये बस्तीवाले भी बैंकोक के अपने भाइयों के समान संगठित हो जाएं, तो सरकारी तंत्रों के साथ वे मोल-तोल करके अपने लिए वैकल्पिक स्थान और सुविधाएं प्राप्त कर सकते हैं।

3 comments:

P.N. Subramanian said...

इसके अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है. दुःख की बात यह भी है की नए आवास के मिल जाने पर उसे किराये में उठा देते हैं और फिर किसी और जगह झुग्गी बना लेते हैं. एक प्रकार से यह उन लोगों का धंदा बन गया है.

डॉ महेश सिन्हा said...

ये एक राजनीतिक षडयंत्र भी है . कभी किसी राजनेता के घर के आसपास झोपड़ पट्टी बनी क्या ? यहाँ भी दोहरा कानून है अगर आपकी संपत्ति पर कोई अवैध कब्जा कर ले तो आप कोर्ट के झंझावात से गुजरेंगे और अगर ये सरकारी जमीन है तो बलपूर्वक खाली करा ली जायेगी . एक कोई योजना तो बनी है इस के लिए लेकिन क्रियान्वयन शून्य है .

Smart Indian said...

कुछ तरीका तो निकालना ही होगा - हमारे देश में तो इस समझौते का ठेका भी किसी बाहुबली नेता के पट्ठे हथिया लेंगे और गरीबों को बेदखल करके ज़मीन सोने के भाव बेचेंगे.

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