Monday, August 10, 2009

चीते की वापसी

भारत के वन्य प्राणियों से परिचित सभी व्यक्ति इस खेदजनक बात से अवगत होंगे कि भारतीय उपमहाद्वीप से चीता विलुप्त हो चुका है। 1948 में कोरवाई रियासत के महाराजा ने तीन अवयस्क चीतों का शिकार किया था, जो संभवतः इस नस्ल के आखिरी तीन नमूने थे।

बंबई नेचरल हिस्ट्री सोसाइटी नामक संस्था के एक प्रकाशन में छपी रिपोर्ट से अब यह आशा बंधती है कि इस शानदार जीव के कुछ नमूने आज भी दक्षिण बलूचिस्तान एवं ईरान के फार्स सूबे के बीच के सीमावर्ती क्षेत्रों में जीवित बचे हो सकते हैं।

रोयल स्काटिश म्यूजियम ने 1972 में चीते की एक खाल प्राप्त की थी जिसके बारे में कहा गया था कि वह बलूचिस्तान के पास तुरबट नामक स्थान से है। इसके अलावा भी ईरान के सीमावर्ती प्रदेशों में चीतों के देखे जाने के अनेक समाचार हाल में प्राप्त हुए हैं। परंतु यह सारा इलाका सैनिक उथल-पुथल के कारण वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुकूल नहीं है। इसलिए यदि चीता जीवित भी हो तो उसकी नस्ल को बचाने के लिए कोई ठोस कदम शायद ही उठाए जा सकें।

ऐसे में अफ्रीका से चीते के कुछ जोड़े भारत लाकर उनकी नई आबादी शुरू करने की वन विभाग की हाल की परियोजना अधिक आशाजनक है। इसके लिए वेलावदर राष्ट्रीय उद्यान को चुना गया है जहां चीते के माफिक पड़नेवाले खुले मैदान हैं, और कृष्णसार, चिंकारा जैसे तृणभक्षी मृगों की तादाद काफी है, जिनका चीता शिकार कर सकता है। यदि यह परियोजना सफल हो सके, तो भारतीय वन्यजीवन निश्चय ही अपने पूर्व वैभव के कुछ कदम और निकट आ जाएगा।

पर क्या यह परियोजना सफल हो सकेगी? भारत अपने कई मौजूदा वन्यजीवों को संरक्षण देने में असफल होता जा रहा है। इनमें शामिल हैं, बाघ, हाथी, सिंह, गैंडा, बनैल भैंसा, भालू, इत्यादि। ये सब नस्लांत की कगार पर लड़खड़ा रहे हैं। क्या भारत जैसा घना-बसा, साधन-हीन, शासन में अकुशल देश चीते को जीवित रखने के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान कर पाएगा?

इस सवाल का जवाब आनेवाले दिन ही दे सकेंगे।

4 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

चीता भी वैसे ही जी लेगा जैसे यहाँ आदमी जी लेते हैं।

अन्ना, अपने देश की हवा माटी पर भरोसा रखें ।

Arshia Ali said...

Utsaah vardhak Samachaar.

डॉ महेश सिन्हा said...

सही है पहले हम अपनी व्यवस्था तो ठीक कर लें

Prabhat Misra said...

EXCELLENT ARTICLE.

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