Tuesday, August 4, 2009

पृथ्वी के लिए टानिक

जब आप बीमारी से कमजोर हो जाते हैं तो डाक्टर कोई शक्तिवर्द्धक टानिक लेने को कहता है। जब स्वयं पृथ्वी कमजोर हो जाए तो क्या यही नुस्खा आजामाया जा सकता है? अमरीकी वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तर है "हां"।

वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ने के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। कुछ भावुक वैज्ञानिकों ने इसे पृथ्वी को बुखार आना कहा है। उन्होंने इलाज स्वरूप दवाई भी सुझाई है। उनका मानना है कि यदि पृथ्वी को लौह-युक्त टानिक पिला दिया जाए तो उसका बुखार उतर सकता है।

अमरीकी पत्रिका नेशनल वाइल्डलाइफ में प्रकाशित एक समाचार के मुताबिक यदि सागरों में भारी मात्रा में लोहा छितरा दिया जाए तो इससे सागर जल में रह रहे शैवालों में जनसंख्या विस्फोट हो जाएगा।

शैवाल एक प्रकार के सूक्ष्म पादप हैं जो सभी पौधों के समान वायुमंडल से कार्बन डाइआक्साइड सोखकर अपने लिए भोजन बनाते हैं। सागर जल में लौह तत्व की कमी होती है, जिसके कारण शैवालों की संख्या नियंत्रण में रहती है। इस कमी को कृत्रिम उपायों से पूरा करके उनकी संख्या में वृद्धि की जा सकती है। इससे वायुमंडल के कार्बन डाइआक्साइड में भी कमी होगी, और साथ-साथ पृथ्वी का तापमान भी नहीं बढ़ेगा, यानी पृथ्वी के बुखार पर काबू हो जाएगा।

अमरीका के राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद की एक बैठक पर बोल रहे वैज्ञानिकों ने इस अनूठे नुस्खे को "संभावनीय" बताया है। केलिफोर्निया के मोस लैंडिंग मरीन लेबरटरी के निदेशक कहते हैं कि इस दशक के अंत तक इस ओर ठोस कार्रवाई की जाएगी। उनका कहना है कि दक्षिण ध्रुव के चारों ओर के सागरों में और प्रशांत महासागर के लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र पर लोहा फैलाना होगा, तभी कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा में उल्लेखनीय प्रभाव पड़ेगा।

अन्य वैज्ञानिक इस प्रकार की कार्रवाइयों का यह कहकर विरोध करते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर किए गए प्रयोगों का सागरीय जीवतंत्र और पृथ्वी की जलवायु पर विपरीत असर पड़े बिना नहीं रहेगा। अतः महासागरों की प्रकृति पर किसी भी प्रकार के मानवी हस्तक्षेप के पहले दो बार सोच लेना लाभकारी होगा। वरना एक गंभीर समस्या से बचने के चक्कर में हम कोई अन्य महागंभीर समस्या को जन्म दे बैठेंगे।

1 comments:

Anonymous said...

कुछ ज्यादा ही पढ़े लिखे लोग अपेक्षाकृत छोटी समस्या सुलझाने चलते हैं और सैकडों बड़ी समस्याएँ और पैदा कर डालते हैं.

धरती के बुखार का बड़ा कारण जंगलों का कम होना है, खाली पड़ी भूमि पर ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगायें जाएँ तो भी 'बुखार' से निपट सकते हैं. और साथ ही मरुस्थलीकरण भी रुक सकता है. पर इतनी सीधी और कॉमन सेंस वाली बात वैज्ञानिकों के दिमाग में आ जाये तो फिर वो बड़ा वैज्ञानिक कैसे?

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