Sunday, July 5, 2009

पक्षी जगत के लैला-मजनू



समस्त प्राणी जगत में यदि किसी प्राणी-समूह की प्रणय चेष्टाएं मनुष्यों की जितनी वैविध्यपूर्ण और आह्लादकारी कही जा सकती हैं, तो वह है पक्षियों की और खासकर जल-पक्षियों की। पक्षी भी हम मनुष्यों की ही तरह सज-धजकर अपने संगी-संगिनी को रिझाते हैं और उनके सामने तरह-तरह की चेष्टाएं करके उन्हें मुग्ध करने की कोशिश करते हैं। प्रणय-युगल एक-दूसरे में ऐसे रम जाते हैं कि बाहरी दुनिया की सुध-बुध खो देते हैं। ऐसे ही प्रणय-मग्न सारस युगलों में से एक को बहेलिए ने बाण से बींध दिया था और अपने संगी के वियोग में कातर विलाप करती सारसी को देखकर आदिकवि वाल्मीकी का हृदय द्रवित हो उठा था और उनके मुख से अनुष्टुप छंद में उद्गार निकले थे। आगे चलकर इसी छंद में संपूर्ण रामायण की रचना हुई। इस प्रकार जल-पक्षियों की प्रणय-क्रीड़ाएं साहित्य एवं कला को प्रेरणा देती हैं। इतना ही नहीं, वे स्वयं अपने-आप में अध्ययन एवं आस्वादन का एक अच्छा विषय हैं।

जैसा कि मनुष्यों में है, पक्षियों में भी प्रणय-चेष्टाओं में नर ही प्रायः पहल करता है। बहुत से पक्षी मधुर ध्वनि में गाकर, या नृत्य की छटा दिखाकर अथवा प्रजनन-काल में विशेष रूप से उग आए आकर्षक परों को उभाड़कर, या फिर मादा को किसी आकर्षक वस्तु (मछली, टहनी, पत्थर, पर आदि) की भेंट देकर, या उड़ने, तैरने या दौड़ने में कौशल दिखाकर मादा का दिल जीतने का प्रयत्न करते हैं।

चहा पानी के किनारे दिखने वाला एक आकर्षक पक्षी है, जिसकी लंबी चोंच और पंखनुमा पूंछ हमारा ध्यान बरबस आकर्षित कर लेती है। नर चहा अपनी संगिनी को एक विचित्र प्रकार से आकर्षित करता है। वह बड़ी ऊंचाई तक उड़कर तेजी से दिशा बदलते हुए नीचे की ओर कुछ दूर उड़ता है और फिर एकदम सीधा जमीन की ओर झपट पड़ता है। झपटते वक्त उसकी पूंछ के पर पंखे की तरह खुल जाते हैं और पंख बड़ी तेजी से कंपित होने लगते हैं। इस प्रकार झपटते समय पूंछ के दो लंबे पर शरीर के पीछे फड़फड़ाते हैं। इन परों के ऊपर से जब हवा गुजरती है तो वे थर्रा उठते हैं जिससे एक विशिष्ट प्रकार की ध्वनि होती है, जिसे अंगरेजी में "ड्रमिंग" कहा जाता है। चहा जब "ड्रमिंग" करते हुए उड़ रहा होता है, तो पुकारता भी जाता है, और उसकी पुकार का जवाब मादा देती है।

सारसों की अनेक जातियां विदेशों से हमारे यहां आती हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध साइबीरियाई सारस है। भारतीय सारस, जो हमारे यहां स्थानीय तौर पर पाया जाता है, भारत का सबसे ऊंचा पक्षी है। वह आदमी जितना ऊंचा एक भव्य पक्षी है। सारस वर्ग के सभी पक्षियों में प्रणय नृत्य अत्यंत मनोहारी एवं नाटकीय होता है। उनके झुंड किसी जलाशय में उतरकर प्रेमी-युगलों में बंट जाते हैं और अपने मनमोहक नृत्यों से अपनी प्रेमिकाओं और सभी देखनेवालों का मन जीत लेते हैं। सारस उम्र भर के लिए जोड़ा बनाते हैं। यदि किसी वजह से जोड़े में से एक मर जाए तो अनेक बार दूसरा भी उसके वियोग में प्राण त्याग देता है। लोक-मानस में इसी कारण इन पक्षियों के प्रति बड़ी श्रद्धा है। ग्रामीण लोग उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते। प्रणय क्रीड़ा में रत नर सारस मादा के सामने नमन करता है और गर्दन आगे की ओर करके पंखों को अधखुला रखते हुए बड़ी नजाकत से मादा की ओर अपनी लंबी-लंबी टांगों को उठाकर बढ़ता है। यों बढ़ते समय वह एक-दो बार हवा में काफी ऊपर तक छलांग भी लगाता है और निरंतर तुरही की जैसी आवाज में पुकारता जाता है। यह आवाज दूर-दूर तक सुनाई देती है। मादा भी इस नृत्य में शामिल होती है और उल्लास में आकर नर के ही समान उछल-कूद मचाती है। इनकी यह प्रणय-क्रीड़ा चित्ताकर्षक होती है। एक तो इतने बड़े आकार के पक्षियों का यों पंख फैलाकर उछलना-कूदना बरबस ही हमारा ध्यान आकर्षित कर लेता है, दूसरे इनका व्यवहार एक-दूसरे के प्रति अत्यंत कोमल एवं प्रेमपूर्वक होता है। अनेक बार शाम ढलते ही नर और मादा सारस आकाश में कम ऊंचाई पर साथ-साथ गगन-विहार के लिए निकल पड़ते हैं और उड़ते-उड़ते पुकारते भी जाते हैं। क्षीण होती रोशनी, मंद-मंद बहती बयार और सारसों की खूबसूरत उड़ान एवं उनकी मनमोहक पुकार से जो समा बंधता है, उसके आकर्षण को वे ही समझ सकते हैं जिन्होंने यह दृश्य देखा हो।

बत्तखों में भी प्रणय-क्रीड़ा अत्यंत लुभावनी होती है। नीलसर में नर अपने सिर को नीचे की ओर दबाकर रखते हुए और परों को फुलाकर मादा के चारों ओर तैरता है। बार-बार सिर और पूंछ को इधर-उधर झटकता है। फिर वह गर्दन को खूब आगे बढ़ाकर अनियमित ढंग से तैरते हुए चोंच को बार-बार पानी में डालता है और छाती के परों को सहेजता है। चोंच को झटके से पानी में से बाहर निकालकर वह पानी को ऊपर हवा में उछालता है। इन सबके दौरान वह सीटी बजाता जाता है। मादा इसके प्रत्युत्तर में बोल पड़ती है, और शर्मीले अंदाज में सिर को दूसरी ओर करके नर के पीछे हो लेती है। अन्य बत्तखों में भी इससे मिलता-जुलता व्यवहार पाया जाता है।

पनडुब्बियों का प्रणय-नृत्य शायद समस्त जलपक्षियों में सर्वाधिक आकर्षक होता है। प्रजनन काल में इन छोटे, गोल-मटोल पक्षियों के सिर और गर्दन पर रंगीन पर उग आते हैं और वे एक कलगी भी विकसित कर लेते हैं। इनकी शोभा का प्रदर्शन करते हुए छोटे-बड़े ताल-तलैयों में तैरते हुए ये पक्षी आमतौर पर देखे जा सकते हैं। उनमें दो तरह के नृत्य देखे जाते हैं। एक में दोनों पक्षी पांव की उंगलियों पर पानी में पास-पास खड़े होकर इतनी तेजी से दौड़ते हैं कि पानी में किसी नाव के बड़ने पर बननेवाली तरंगों के समान तरंगें प्रकट होती हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो पैंग्वीन बर्फ पर दौड़ रहे हों। दौड़ के अंत में वे छाती के बल पानी में गिर पड़ते हैं जिससे पानी की एक छोटी लहर ऊपर उठ आती है।

दूसरे प्रकार के नृत्य में नर और मादा विपरीत दिशाओं से एक-दूसरे की ओर तैरते हैं और इतने पास आ जाते हैं कि सीने से सीना छूने लगता है। फिर वे एकाएक डुबकी लगाते हैं और काफी समय तक पानी के नीचे तैरते रहते हैं। जब वे पुनः ऊपर आते हैं, तो दोनों की चोंच में कोई-न-कोई जल-वनस्पति होती है। उनके पैर चप्पू के समान बड़ी तेजी से चलते हैं, जिससे संपूर्ण शरीर पानी के ऊपर उठ जाता है। इस तरह दोनों एक-दूसरे के नजदीक तैरते हैं और फिर अलग हो जाते हैं। ऐसा वे कई बार करते हैं। उनका हाव-भाव मनुष्यों जितना भाव-प्रवण एवं आकर्षक होता है।

मछारंग, मछलीमार, पनचील आदि शिकारी पक्षी जो उड़ने में अत्यंत दक्ष होते हैं, हवाई कलाबाजी दिखाकर मादा को रिझाने की कोशिश करते हैं। नर और मादा एक साथ उड़ान भरते हैं। शुरू में नर मादा के कुछ पीछे उड़ता है, पर कुछ ही समय में वह बड़ी तेजी से मादा के आगे निकल जाता है। फिर वह चक्कर काटते हुए आसमान में खूब ऊंचाई तक पहुंचकर वहां से तीर के वेग से नीचे की ओर लपकता है।

बलाक वर्ग के पक्षी जैसे चमरगेंच, घोंघिल, जांघिल आदि अपनी विशाल चोंच को चिमटे के समान बजाकर और अपनी लंबी-लंबी टांगों पर नृत्य करके मादा को रिझाते हैं। वे एक-दूसरे को टहनी, मछली, तिनका आदि की भेंट देकर उन्हें खुश करने की कोशिश करते हैं।

बगुलों में प्रजनन काल में आकर्षक पर उनकी गर्दन, सिर और छाती पर उग आते हैं। एक जमाने में इन परों के लिए उन्हें बड़े पैमाने पर मारा जाता था, क्योंकि इन परों को यूरोप और अमरीका की महिलाएं अपने हैट में लगाती थीं। बत्तखों जैसे कुछ पक्षियों में प्रजनन काल में संपूर्ण शरीर का रंग-विन्यास ही बदल जाता है।

प्रणय की ये विभिन्न चेष्टाएं प्रयोजनहीन नहीं होतीं। इनसे नर और मादा के बीच गाढ़ा संबंध पैदा हो जाता है। यह संबंध नर-मादा को समस्त प्रजनन काल में एक-दूसरे के साथ रहकर घोंसला बनाने, अंडों की देखभाल करने और चूजों को खिलाने-पिलाने की प्रेरणा देता है। सारस जैसे कुछ पक्षियों में यह बंधन उम्र भर का होता है। इतने लंबे समय तक एक-दूसरे के प्रति लगाव बनाए रखने के लिए साल-दर-साल दुहराई जानेवाली प्रणय-क्रीड़ाएं महत्वपूर्ण होती हैं।

7 comments:

Ashok Pandey said...

हमारी जानकारी बढ़ी। आभार।

विवेक सिंह said...

अच्छा विश्लेषण कर दिया जी , धन्यवाद !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण जी!
जानकारियों से भरी पोस्ट के लिए,
धन्यवाद!

राज भाटिय़ा said...

बालसुब्रमण्यम जी इस सुंदर जानकारी के लिये धन्यवाद

Science Bloggers Association said...

बहुत शानदार जानकारी है। शुक्रिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

anil said...

बढ़िया जानकारी आभार !

Udan Tashtari said...

मस्त जानकारी!!

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