वर्षा ऋतु में प्रकृति सचमुच खिल उठती है। अनेक प्रकार के जीव न जाने कहां से प्रकट होने लगते हैं--घोंघे, मेंढ़क, टर्र, अनगिनत कीड़े-मकोड़े, जलपक्षी, कुकुरमुत्ते और तरह-तरह के पौधे। पृथ्वी जैसे मखमली हरी चादर ओढ़ लेती है। वर्षा ऋतु अनेक जीव-जंतुओं के लिए संतानोत्पत्ति का भी समय होता है। छिपकलियां (घरेलू एवं बाग-बगीचों में रहनेवाली छिपकलियां) इसी समय अंडे देती हैं। बत्तख, हंस, सारस, बगुले, बलाक आदि अनेक प्रकार के जलपक्षी भी वर्षाकाल में ही प्रजनन करते हैं। अपने तेजी से बढ़ते चूजों के लिए वर्षाकाल के सिवा किसी अन्य समय में पर्याप्त भोजन जुटा पाना जलपक्षियों के लिए असंभव होता है। हिरण, मृग, खरगोश आदि तृणभक्षी प्राणियों के लिए वर्षा ऋतु घास और स्वादिष्ट हरी झाड़ियों की दावत ही पेश कर देता है। मांसाहारी प्राणी भी उनका आहार बननेवाले तृणभक्षियों की बढ़ती संख्या से प्रसन्न रहते हैं।
यदि आप प्रकृति में रुचि लेते हो तो इन सब परिवर्तनों का लेखा-जोखा रख सकते हैं। इसके लिए आपको अपने घर से बहुत दूर जाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। निकट के ही किसी खुले प्रदेश, तालाब या उद्यान में जाना काफी होगा।
चूंकि हमारी यादगाश्त शक्ति हमें कई बार धोखा दे देती है, इसलिए जब भी प्रकृति में भ्रमण हेतु बाहर निकलें अपने पास एक पुस्तक और कलम हमेशा रखें और इसमें प्रत्येक प्रेक्षण दर्ज करने की आदत डालें। अनेक बार किसी जंतु या उसके क्रियाकलाप का शब्दों में वर्णन करना कठिन होता है। इसके बनिस्बत उसका चित्र बनाना अधिक आसान होता है। अतः अपनी पुस्तक में शाब्दिक वर्णनों के साथ-सात आसान चित्र भी बनाने की कोशिश करें।
यदि जहां आप निरीक्षण करना चाहते हैं, वह जगह बहुत बड़ी है तो आप उसका एक छोटा हिस्सा चुन लें और इस छोटे हिस्से में मौजूद सभी पौधों और जीवों का अवलोकन करें। इस प्रकार एक सीमित क्षेत्र में अवलोकन करने के अनेक फायदे हैं। आप प्रत्येक चीज को काफी बारीकी से देख पाएंगे। आपका ध्यान भी अनेक परस्पर विरोधी बातों में बंटकर नहीं रह जाएगा।
आपको हर चीज की ओर ध्यान देना चाहिए, चाहे वह क्षुद्र-से-क्षुद्र कीड़ा हो या एक भव्य जलपक्षी। इस प्रकार का अवलोकन आपको एक बार नहीं बल्कि दिन के किसी निश्चित समय में लगातार कई दिनों तक करना चाहिए। इससे आपको पता चल जाएगा कि अनेक जंतु स्थायी रूप से उस प्रदेश में रहते हैं अथवा वहां आते-जाते रहते हैं। इन जंतुओं के विकास, गतिविधियों, आदतों आदि के बारे में भी आपको जानकारी मिलेगी।
इन प्राकृतिक स्थलों में पाए जानेवाले सभी पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं का नाम जानना न तो आवश्यक है न संभव ही। यह तो बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के लिए भी एक पेचीदा समस्या है। इसलिए यदि आप किसी पौधे या जीव को नाम से पहचान न सकें तो निराश न हों। आप उसे अच्छी तरह देखें और उसकी विशेषताओं, आदतों और आवास-स्थल को समझने की कोशिश करें।
जंतुओं को उनके बड़े-बड़े समूहों में रखने का प्रयत्न करें। ये समूह हैं:-
-कृमि (केंचुए आदि)
-कीट (छह पैर वाले जीव)
-मकड़ी (आठ पैर वाले जीव)
-उभयचर (मेंढ़क और टर्र)
-सरीसृप (कछुए, सांप और छिपकलियां)
-पक्षी
-स्तनधारी
पेड़-पौधों को आप अनेक प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं, जैसे:-
-पौधा
-झाड़ी
-बेल
-पेड़
क्या इन पेड़-पौधों पर फूल आते हैं? यदि हां तो वर्ष के किस समय आते हैं? फूल आने पर उन पर कौन-कौन से जीव-जंतु दिखाई देते हैं? ये जीव क्या करते हैं?
पेड़ की छाया तले कुकुरमुत्तों, फफूंदी और काई को खोजें। क्या ये उजाले वाले स्थानों पर भी दिखाई देते हैं?
जहां पानी इकटठा होता हो, वहां मेंढ़कों, कछुओं और जलपक्षियों की बहुतायत होती है। पानी में मेंढ़क के बच्चों (बेंगचियों) को खोजें और उनके शारीरिक परिवर्तनों का अध्ययन करें। वे कब पानी से बाहर निकलते हैं? क्या पानी के पास बैठे मेंढ़क पुकार रहे हैं? पानी में रह रहे अन्य जीव-जंतुओं का भी अवलोकन करें। पानी से कुछ दूरी पर आपको टर्र भी दिखाई देगा। इसकी तुलना मेंढ़क से करें। टर्र की पिछली टांगें मेंढ़क की पिछली टांगों से छोटी होती हैं। उसकी खाल भी खुरदुरी और कम गीली होती है। वह उछलता भी कम है। शाम के वक्त टर्र अधिक दिखाई देते हैं। उन्हें बिजली के खंभों के आस-पास खोजें। रोशनी से आकर्षित होकर आनेवाले कीड़ों को खाने ये वहां एकत्र होते हैं। यह भी देखें कि टर्र किन-किन कीड़ों को खाता है। पांच मिनट के अंतराल में वह कितने कीड़ों को पकड़ता है? वह कीड़ों को कैसे पकड़ता है? टर्र और मेंढ़क को किसान का मित्र क्यों कहा जाता है?
सरीसृपों को देखने के लिए भी वर्षाकाल उत्तम समय होता है। तरह-तरह के सांप, छिपकली और कछुए धूप सेंकते नजर आते हैं। वर्षाकाल में बिल पानी से भर जाते हैं और सांप बाहर निकलने पर मजबूर हो जाते हैं। यद्यपि अधिकांश सांप विषहीन होते हैं, परंतु विषैले सांप आपकी जिंदगी को खतरे में डाल सकते हैं। अतः सांपों का अवलोकन करते वक्त अत्यंत सतर्क रहें। सांपों को भी किसान का मित्र कहा जाता है। क्यों?
भ्रमण के दौरान क्या आप कभी किसी चिप-चिपे, धागे जैसे पदार्थ से जा उलझे थे? यह मकड़ी का जाल है। बरसात में अनेक प्रकार की मकड़ियां दिखाई देती हैं। इन्हें जाल बुनते और जाल के जरिए कीड़ों को पकड़ते देखें। क्या सभी मकड़ियां एक जैसा जाल बनाती हैं? मकड़ी और चींटी की शरीर-रचना में क्या अंतर होता है?
पानी के किनारे अनेक जलपक्षी मिलेंगे। यह पता करें कि ये जलपक्षी कब पानी के पास आते हैं और कब वहां से चले जाते हैं। अनेक पक्षी दूर-दूर से यात्रा करके भारत आते हैं। जलपक्षियों की चोंचों और पैरों की आकृति में इतनी भिन्नता क्यों पाई जाती है?
प्रकृति में भ्रमण करते समय इस प्रकार के और अनेक सवाल आपके मन में उठेंगे। इन सबका उत्तर शायद आपको मालूम न हो, परंतु नियमित रूप से अवलोकन करने से प्रकृति के अनेक रहस्य खुलने लगते हैं। इन रहस्यों को समझने के रोमांचक प्रयत्न से जुडने का आनंद ही कुछ और है। इस आनंद से अपने-आपको वंचित न रखें। बिना विलंब प्रकृति की पाठशाला में भर्ती होकर हमारे अद्भुत परिवेश के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त करें।
Wednesday, July 15, 2009
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9 comments:
बहुत सुन्दर.हम तो रोमाचित हो गए. हमारी समझ में अब तक नहीं आया की लोगों में प्रकृति के प्रति लगाव कैसे उत्पन्न किया जावे.हमारा पुत्र ही कहता है की पापा आप तो घर को जंगल बना रहे हो. उसे केवल कांक्रीट के जंगल ही भाते हैं. अभी नादान है.शायद वक्त के साथ कुछ परिवर्तन आवे.
Hamare parivesh ke baare men aapne rochak dhang se bataya hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
wow isse chota anuched nahi dekha but its good and it helped me with my homework !
ITS ALL TRUE AUR BHOT HI ACHHA HAI AUR IS ANUCHED NE MERI BOHAT MADDAD KI HAI MERE GRIH KARYA MEIN
AUR AGAR AISE HI SARE LOG PEDO AUR VARSHA RITU KE BARE MEIN AISA SOCHENGE TOH PHIR APNA DESH BHUT AAGE JAYENGA
its really good bohut hi acha anuchad hai my teacher had given me the same anuchad n it has helped me alooot :)
thank you
this really helped with my project
it helped for my hindi project THANKYOU
NICE YRRRRRRRRR
THIS REELY HELPED ME FR DOING MY PROJECT ON TIME
THZXXXXX MY FRND
from abhishek singh
this is the bestest ever for doing work of school
it help in doing my school project
thakssssssssssssssss
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