पवन शक्ति आज विश्व का सबसे तेजी से बढ़ता ऊर्जा स्रोत है। 1995 में विश्व भर में 4,900 मेगावाट बिजली हवा के बहाव से बनाई गई। 1994 में 3,700 मेगावाट बिजली इस स्रोत से बनाई गई थी। 1990 से 1995 के दौरान 20 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से पवन शक्ति से बिजली बनाने की अतिरिक्त क्षमता पैदा की गई। इसकी तुलना में परमाणविक ऊर्जा उत्पादन में 1 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हुई। विश्व भर में कोयले के उपयोग में पिछले दशक में बिलकुल वृद्धि नहीं हुई है।
पवन शक्ति से बिजली निर्माण 1980 में डेनमार्क में सर्वप्रथम आरंभ हुआ जहां उसे सरकार से काफी संरक्षण प्राप्त हुआ। यद्यपि आज विश्व में पैदा की गई कुल बिजली के केवल 1 प्रतिशत के लिए पवन शक्ति जिम्मेदार है, लेकिन आनेवाले दिनों में पवन शक्ति अनेक देशों के लिए ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत होगा। इसका मुख्य कारण यह है कि पर्यावरणीय दृष्टि से पवन शक्ति एकदम साफ-सुथरा है। आजकल कोयला जलाकर अधिकांश बिजली बनाई जाती है, जिससे वायु प्रदूषण और अम्ल वर्षा की समस्याएं पैदा हो गई हैं। पवन शक्ति इन समस्याओं से मुक्त है। न ही वह कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करता है, जो हरितगृह प्रभाव लाकर पृथ्वी की जलवायु को ही बदल सकता है।
वायु की औसत रफ्तार 6 मीटर प्रति सेकेंड (लगभग 22 किलोमीटर प्रति घंटा) रहने पर एक किलोवाट-घंटा बिजली की लागत 1.75-2.50 रुपए होती है, जो कोयले से चलनेवाले बिजलीघरों की बिजली से कुछ सस्ती है। पवन चक्कियों की बनावट में सुधार लाकर इस लागत में और कमी लाई जा सकती है। लागत कम करने की दृष्टि से आज बड़े-से-बड़े संयंत्र बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए जर्मनी में 1992 में पवन चक्कियों की औसत क्षमता 180 किलोवाट थी। 1995 तक वह बढ़कर 450 किलोवाट हो गई। जल्द ही 1000-1500 किलोवाट क्षमता वाली चक्कियां बाजार में आने लगेंगी। इनके पंखों का फैलाव 65 मीटर या उससे भी अधिक होगा।
भारत में लगभग 3,000 पवन चक्कियां हैं जो सब 1990 के बाद लगाई गई हैं। सरकारी स्रोतों के अनुसार 1 अप्रैल 1996 तक 730 मेगावाट बिजली पवन शक्ति से पैदा करने की क्षमता स्थापित की जा चुकी है। 1995 में भारत ने पिछले वर्ष की तुलना में 375 मेगावाट अधिक ऊर्जा पवनशक्ति से बनाई। आज भारत उच्च स्तर की पवन चक्कियां बनाने लगा है। देश में 20 से अधिक कंपनियां इस व्यवसाय में लगी हैं। तमिलनाडु इस मामले में सबसे आगे है। यहां सैंकड़ों लोग इस नवीन उद्योग से रोजगार पा रहे हैं।
Sunday, July 19, 2009
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8 comments:
अन्ने, वैसे भारत में सौर ऊर्जा का बहुत स्कोप है। जर्मनी जहाँ सौर रेडिएशन का समय और तीव्रता दोनों कम हैं, स्थान का अभाव है; आज अग्रणी है। 35 मेगावाट तक के प्लाण्ट सीधे ग्रिड को सप्लाई करते सुने गए हैं। ऐसे प्लाण्टों को केवल 3 आदमी चलाते हैं।
तुलना में देखें तो भारत हर दृष्टि से कहीं आगे है। न जाने क्यों प्राइवेट सेक्टर भी यहाँ इस तरह के प्रपोजल लेकर नहीं आता।
सही कहा है आपने पवन उर्जा में अपार संभानाएं हैं किंतु, भारत में तो यह भी ब्लैक मनी को व्हाइट बनाने का धंधा बन कर रह गया है. क्योंकि इस काम में लगने वाले पैसे पर आयकर की 100% छूट के चलते देश के तमाम नामी-गिरामी लोग इस धंधे में कूद पड़े.
बहुत ही अच्छा लेख और सामायिक भी .यू ऐ ई में आज कल इसी पवन शक्ति से उर्जा के निर्माण पर बहुत ऊँचे स्तर पर काम चल रहा है.
recently,,,UAE was chosen to host the headquarters of the International Renewable Energy Agency (Irena)
बेहतरीन आलेख..पवन उएजा पर यहाँ भी खूब प्रोजेक्ट आ रहे हैं./
में पवन चक्की लगाना चाहता हूँ इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी प्रदान करें मशिनरी लागत व बिजली कहा बेच सकते है के सबंध में
में पवन चक्की लगाना चाहता हूँ इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी प्रदान करें मशिनरी लागत व बिजली कहा बेच सकते है के सबंध में krishimitra4715@gmail.com पर
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