Tuesday, July 14, 2009

गांवों की शोभा बढ़ाता है सारस


सूरज डूबने लगा है, परछाइयां लंबा रही हैं। हवा के मंद-मंद बहाव के साथ-साथ रात और खामोशी धीरे-धीरे उतर रही हैं। इसी वक्त सारस का एक जोड़ा अपनी बिगुल जैसी आवाज में पुकार उठता है। कितनी रोमांचक लगती है उसकी यह पुकार। धीमे-धीमे पंख चलाते हुए, जमीन से मानो चिपके हुए से, क्षितिज की ओर उड़ते इन पक्षियों का नजारा कितना भव्य लगता है। इसमें कोई शक नहीं कि सारस हमारे गांवों, खेतों और झीलों की शोभा में चार चांद लगा देता है।

सारस गंभीर स्वभाव का पक्षी है। उसकी चाल धीमी और गौरवपूर्ण होती है। वह भारत में पाया जानेवाला सबसे बड़ा पक्षी है। ऊंचाई में वह औसत कद के मनुष्य की बराबरी कर सकता है। वह दुनिया का सबसे बड़ा उड़नेवाला पक्षी भी है। सारस आमतौर पर जोड़ों में विचरता है। जब चूजे साथ हों तब अथवा प्रजननकाल में ही तीन-चार सारस एक जगह नजर आते हैं।

सारस का सिर राख के रंग का, गले का ऊपरी भाग लाल, टांगें गुलाबी, चोंच हरापन लिए हुए और बाकी शरीर धूसर रंग का होता है। गर्दन, टांगें और चोंच लंबी होती हैं। जब पंख बंद होते हैं, तब उनके पर पूंछ के आगे लटकते रहते हैं। नर और मादा देखने में एक जैसे लगते हैं।

भारत में ऐसे गिने-चुने पक्षी ही हैं, जिन्हें न मारने की परंपरा है। सारस उनमें से एक है। एक बार जोड़ा बांध लेने के बाद नर और मादा मृत्यु-पर्यंत साथ निभाते हैं। यदि उनमें से एक मर जाए तो दूसरा भी उसके वियोग में घुल-घुलकर प्राण त्याग देता है।

सारस शर्मीला पक्षी नहीं है। वह जमीन पर ही रहता है, जहां उसका भोजन भी उसे मिल जाता है -- मेढक, छोटे जीव और जलीय पौधे। वह घोंसला भी जमीन पर ही बनाता है। सामान्यतः वह आहार खोजते हुए खामोश रहता है, पर यदि जोड़े में से एक बोल उठे, तो दूसरा तुरंत जवाब देता है। सारस की पुकार बुलंद और दिशाओं को गुंजा देनेवाली होती है, पर उसमें कोई ऐसी बात होती है कि वह कर्णकटु नहीं लगती। सारस उड़ते-उड़ते भी बोलता है। उसकी उड़ान धीमी और गंभीर होती है। पंख एक लय में चलते जाते हैं। उड़ते समय वह गर्दन को आगे की ओर और टांगों को पीछे की ओर सीधे रखता है। साधारणतः वह बहुत ऊंचाई पर नहीं उड़ता।

बारिश शुरू होते ही सारस का प्रजननकाल शुरू होता है। गर्मियों के मौसम से भी पहले प्रजनन की तैयारी में उनका भव्य नृत्य आरंभ हो जाता है। पहले नर और फिर मादा नपे-तुले अंदाज में छोटी-छोटी फुदकियां लेते हैं। गर्दन आगे तनी हुई और उठी रहती है। एक-दूसरे को सिर नवाकर अभिनंदन करते हुए से वे गर्दन झुकाते हैं और हवा में उछल पड़ते हैं। फिर वे गोल-गोल फुदकते हुए नाचते हैं।

अभी हाल तक सारस हमारे गांवों में आसानी से दिख जाता था। लेकिन कीटनाशक दवाओं के बढ़ते उपयोग, यंत्रीकृत कृषि के चलन और पुरानी परंपराओं के कमजोर पड़ने से यह सुंदर पक्षी भी अब दुर्लभ होता जा रहा है।

7 comments:

Udan Tashtari said...

आभार जानकारी का!

Arvind Mishra said...

यही तो है पुराणोक्त क्रौंच पक्षी !

P.N. Subramanian said...

तजाकिस्तान के झीलों के किनारे ये खूब होते हैं. बड़ी बेरहमी से इनका शिकार होता है. आभार.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

“मा निषाद प्रतिष्टां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ।।” - प्रथम श्लोक, आदि कवि वाल्मीकि।

प्रथम कविता के उत्प्रेरक(किस पक्षी की हत्या इतनी कारुणिक और इतनी ऐतिहासिक है?) से परिचय कराने के लिए आभार । यह लेख तो एक शब्द चित्र है। बधाई।

Alpana Verma said...

सारस तो बहुत ही सुन्दर और प्यारा पक्षी लगा ,इस को इतने ध्यान से पहले कभी नहीं देखा था.
ही विस्तृत और रोचक जानकारी मिली .आभार

mehek said...

jitana sunder pakshi jankari bhi utani hi achhi rahi.

Anonymous said...

सारस के बारे मे इतनी जानकारी उपलब्ध करने का शुक्रिया ...सचमुच एक खूबसूरत पक्षी है ये ....इन्हे बचाने के उपाय भी बताइए

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