हमारे बच्चे जब पहले-पहल बोलना सीखते हैं तो उनकी तोतली बोली हमारे मन को भा लेती है। अब वैज्ञानिक पा रहे हैं कि बंदर शिशु भी हमारे ही बच्चों के समान तुतलाते हैं, और गलती कर-करके बंदर भाषा सीखते हैं। अतलांटा के इमोरी विश्वविद्यालय के जीव-वैज्ञानिकों द्वारा बंदरों पर किए गए अध्ययनों में यह बात सामने आई है।
बंदरों में भी एक प्रकार की भाषा होती है। अनेक प्रकार की परिस्थितियों की सूचना देने के लिए वे चेहरे के हावभावों और पुकारों का उपयोग करते हैं। इन्हें सब प्रत्येक शिशु-बंदर को सीखना पड़ता है। इसमें वे गललियां भी करते हैं। परंतु अपने से बड़ों को देखकर वे इन गलतियों को सुधार लेते हैं।
हमारे यहां लड़कियां लड़कों की अपेक्षा भाषा अधिक तेजी से सीख जाती हैं। बंदरों में भी यही बात देखी गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसका मुख्य कारण यह है कि मादाएं टोली के साथ उम्र भर रहती हैं, जबकि नर वयस्क होने पर अपनी अलग टोली बनाते हैं। अतः मादाओं को कम उम्र में ही भाषा पर अधिकार करना आवश्यक हो जाता है। मादा शिशु अन्य बंदरों के साथ अधिक समय गुजारती हैं। इसलिए उन्हें भाषा-संकेत सीखने का अधिक अवसर मिलता है।
Monday, July 13, 2009
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4 comments:
बहुत सुंदर जानकारी. अटलांटा वालों को भी धन्यवाद. मुझे तो लगता था कि तुतलाने का अधिकार तो मानव का ही है :-)
दिलचस्प जानकारी दी.
रोचक जानकारी.....
रोचक एवं दिलचस्प।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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