असम के स्थानीय अखबारों में छप रही खबरें यदि सही हैं तो वहां के जंगली हाथियों ने एक डरावनी आदत डाल ली है, मानव-भक्षण की।
अब तक हाथी को शुद्ध शाकाहारी पशु माना जाता था, लेकिन असम के एक वन्यजीव विशेषज्ञ श्री के के शर्मा कहते हैं कि उन्होंने दो अवसरों पर हाथियों को मनुष्यों को मारते और उनके शवों को खाते देखा है। इनमें से पहली घटना कर्बी ऐंग्लोंग जिले के उमरानग्सु नामक स्थान पर घटी और दूसरी सोनितपुर जिले के रंगगोरा नामक स्थान पर। दोनों ही अवसरों पर हाथियों ने लगभग आधा शव खा डाला।
श्री शर्मा के अनुसार असम में हाथियों के प्राकृतिक आवासस्थलों को मनुष्य ने हथिया लिया है। इसलिए हाथी भोजन-पानी के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। लगता है इस परेशानी ने उनके मानसिक संतुलन को हिला दिया है। यही उनके आदमखोर हो उठने का कारण है।
दिल्ली से प्रकाशित होनेवाली अंतरराष्ट्रीय विज्ञान एवं पर्यावरण पत्रिका डाउन टु एर्थ ने भी यह सनसनीखेज खबर छापी है। उसके अनुसार पिछले वर्ष असम में हाथियों ने 20 लोगों को कुचल डाला था। स्थानीय अखबारों ने हाथियों द्वारा आदमी को खाने के कम से कम तीन खबरें छापी हैं। ये सब वारदातें काजीरंगा अभयारण्य के इर्द-गिर्द के गांवों में घटीं।
Wednesday, July 8, 2009
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6 comments:
आदमखोर हाथी!पहली बार सुना.
दुःख भी हुआ अफ़सोस भी.
जंगल काटे जाने का यह भी एक दुष्परिणाम है.
ह्म्म!! आज तक न सुना था इस बारे में.
ये सब हमारे कुकर्मों का फल है।
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन पर आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
असम तंत्र विद्या के लिएजाना जाता रहा है. अघोर पंथी सब कुछ खाते हैं. वहां के हाथियों ने ऐसे इंसानों को observe किया होगा.फिर वे भी तंत्र सिद्धि में लग गए होंगे. हमारे इन वाक्यांशों को गंभीरता से न लें. हाथियों का मांसाहारी हो जाना अप्राकृतिक ही है. सूखे और अकाल की स्थिति में जीवित रहने के लिए ऐसा करना अपरिहार्य हो सकता है परन्तु असम में घने जंगल हैं और प्रचुर मात्रा में उनके खाने योग्य वनस्पति भी.
Aadamkhor haathee. Bada hee ajeeb hai.
सरल शब्दों मैं अच्छी जानकारी दी है आपने | धन्यवाद |
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