Monday, July 6, 2009
पक्षी जगत के धोखेबाज
प्रकृति में सभी प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। इसका मतलब यह भी है कि लगभग सभी प्राणी किसी-न-किसी अन्य प्राणी की आहार-सूची में शामिल होते हैं। पक्षी भी इसके अपवाद नहीं हैं। अनेक हिंसक जीव पक्षियों का शिकार करते हैं। परंतु प्रकृति ने पक्षियों को निस्सहाय नहीं रखा है। कुछ उड़ने में तेज हैं, तो कुछ तैरने में या डुबकी लगाने में। कुछ उग्र प्रकृति वाले हैं। परंतु बहुत से पक्षी परभक्षियों की क्रूर नजरों से अपने-आपको जहां तक हो सके बचाए रखने में ही खैरियत समझते हैं।
प्रकृति किसी पर पक्षपात नहीं करती। जहां वह शिकार बननेवाले प्राणियों की सुरक्षा का उचित प्रबंध करती है, वहीं वह इसका भी खयाल रखती है कि शिकारी जीव भूखों न मर जाएं। उन्हें भी वह लुकने-छिपने की कला में दीक्षा देती है ताकि वे अहेर प्राणियों की पैनी दृष्टियों से बचकर उन पर अचानक और सफल वार कर सकें।
अन्य प्राणियों की नजरों में धूल झोंकने की कला को छद्मावरण कहा जाता है। अनेक पक्षी इस कला में प्रवीण होते हैं। कुछ शिकारियों से बचने के लिए छद्मावरण धारण करते हैं, तो कुछ शिकारी पक्षी शिकार करने के लिए उसे अपनाते हैं।
अनेक पक्षी मत्स्यभोजी होते हैं। उनका शरीर नीचे से हल्के रंग का होता है और ऊपर से अधिक गहरे रंग का। यह इसलिए कि उनके नीचे तैर रही मछलियों को उनकी मौजूदगी का पता न चल सके। मछलीमार, किलकिला आदि पक्षियों में निचला शरीर सफेद होता है, ताकि मछलि पकड़ने के लिए हवा से पानी में गोता लगाते समय वे आसानी से दिखाई न दें। किलकिले का शरीर नीले रंग का होता है, जिससे नीले आसमान की पृष्ठभूमि में वे मछलियों को आसानी से दिखाई नहीं देते।
कुछ प्रकार के बगुले बहुत ही शर्मीले स्वभाव के होते हैं। वे हिंस्र जंतुओं की नजरों से बचने के लिए सदा प्रयत्नशील रहते हैं। उनके शरीर की रचना और रंग-विन्यास ऐसा होता है कि वे अपनी पृष्ठभूमि में पूरा-पूरा विलीन हो जाते हैं। ये पक्षी जलीय घास के झुरमुटों में लुक-छिपकर आहार खोजते हैं। खतरा महसूस होने पर वे अपनी लंबी और पतली गर्दन और चोंच को आसमान की ओर करके निश्चल खड़े हो जाते हैं। उनके शरीर का रंग भी सूखी घास के रंग से मिलता-जुलता होता है। शरीर पर गाढ़े रंग की धारियां बनी होती हैं। शरीर की ये धारियां और ऊपर की ओर बढ़ी हुई गर्दन और चोंच घास के डंठलों में इस खूबी से मिल जाती हैं कि आप उन्हें दो हाथ की दूरी पर से भी देख नहीं सकते। यदि हवा चल रही हो और घास लहरा रही हो, तो वे भी अपने शरीर को घास की लय में हिलाते हैं ताकि कोई उन्हें हवा में झूम रही घास का ही एक गुच्छा समझ ले। पानी पर तैरते पौधों में अधिकांश समय बितानेवाली जलमखानी, जलमोर आदि पक्षियों में भी अपने परिवेश में विलीन होने की अद्भुत क्षमता होती है।
छिछले पानी में आहार खोजनेवाले अनेक पक्षी जमीन पर ही घोंसला बनाते हैं। उनके अंडों और चूजों का रंग इस प्रकार का होता है कि वे उनके परिवेश में घुल-मिल जाते हैं। ये पक्षी स्वयं भड़कीले रंग के होते हैं। इससे हिंस्र पशुओं का ध्यान सबसे पहले इन पक्षियों की ओर जाता है न कि उनके निस्सहाय अंडों और चूजों की ओर। ये पक्षी उड़ने और दौड़ने में कुशल होते हैं और हिंस्र पशुओं के चंगुल में आसानी से नहीं फंसते। जब वे घोंसलों पर बैठे होते हैं तो वे परभक्षी को दूर से ही देख लेते हैं और चुपके से घोंसले से कुछ दूर चले जाते हैं। इसके बाद वे बहुत शोर करते हुए परभक्षी की ओर उड़ते हैं और उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इस तरह वे अपने घोसलों को परभक्षी की कुदृष्टि से बचा लेते हैं। कुछ पक्षी इससे भी बढ़कर चालाकी करते हैं। वे घोंसले से दूर जाकर जोर-जोर से चीखने-बिलखने लगते हैं और ऐसा अभिनय करते हैं मानो उनका एक पंख टूट गया हो। यह देखकर परभक्षी सोचता है कि उसे आसानी से पकड़ा जा सकता है। इस गलतफहमी में वह उनकी ओर बढ़ने लगता है। पक्षी उसे बहुत पास आने देती है और फिर कुछ दूर और भाग जाती है। इस तरह वह परभक्षी को घोंसले से उसी प्रकार दूर ले जाती है जिस प्रकार पंचवटी के पास दिखा स्वर्ण हिरण श्री राम को गहन वन में लिवा ले गया था। जब हिंस्र पशु घोंसले से काफी दूर पहुंच जाए, तब पक्षी चुपके से उड़ जाती है। बेवकूफ बना परभक्षी खिसियाकर रह जाता है।
बत्तख आदि कुछ पक्षियों के शरीर का रंग इस प्रकार का होता है कि उन्हें उनके परिवेश से अलग पहचानना कठिन होता है, पर वे सफेद अंडे देते हैं, जो आसानी से दिख जाते हैं। इसलिए ये पक्षी अपने अंडों पर हमेशा बैठे रहते हैं, ताकि परभक्षियों की निगाहों से अंडे बचे रहें। परभक्षी के बहुत पास आने तक ये पक्षी घोंसला नहीं छोड़ते, क्योंकि उन्हें अपने छद्मावरण पर पूरा भरोसा होता है कि परभक्षी उन्हें देख नहीं पाएगा। जब परभक्षी उनको कुचलने ही वाला होता है तब कहीं जाकर वे हड़बड़ाकर उड़ चलते हैं।
बहुत से जलपक्षियों की उड़ने की क्षमता कमजोर होती है। उड़ने से अधिक वे तैरने और डुबकी लगाने में कुशल होते हैं। ये पक्षी खतरे से बचने के लिए भी पानी की शरण में ही जाते हैं। उदाहरण के लिए जलमुर्गी खतरा महसूस करते ही पानी के नीचे चली जाती है। केवल उसका सिर पानी के ऊपर रहता है। अपने-आपको इस स्थिति में रखने के लिए वह किसी जल-वनस्पति को पैरों से पकड़ लेती है। पनडुब्बी और बानवर भी खतरे से बचने के लिए गोता लगाते हैं। जब डूबना हो तो वे अपने शरीर को दबाकर पेट में मौजूद वायु को बाहर निकाल देते हैं। इससे उनका वजन पानी से अधिक हो जाता है और वे अनायास ही डूब जाते हैं। वे इतनी सफाई से पानी के नीचे जाते हैं कि सतह पर जरा सी भी हलचल नहीं दिखाई देती। एक पल तो वे तालाब पर इत्मीनान से तैर रहे होंगे, दूसरे ही पल वे पानी के नीचे हो जाएंगे और आप सोच में पड़ जाएंगे कि क्या उन्हें हवा लील गई? अंग्रेजों के जमाने में जब जलपक्षियों का बंदूकों से बड़े पैमाने पर शिकार होता था, तब पनडुब्बियों के कारण गरों को काफी झुंझलाहट होती थी। बंदूक से निकली आग की लपट को ये जलपक्षी दूर से ही देख लेते थे और तुरंत पानी के नीचे चले जाते थे। निशाना अचूक होने पर भी गोली उनका बाल भी बांका नहीं कर पाती थी। कुछ देर बाद वे शिकारी को मुंह चिढ़ाते से पुनः पानी पर कल्लोल करने लगते, मानो कुछ हुआ ही न हो!
चहा को लेकर भी गोरे काफी परेशान रहते थे। जो चहा को मार गिरा सकता था, उसकी बंदूकअंदाजी का लोहा सब मानते थे। शत्रु से बचने के लिए चहा सीधा न उड़कर पल-पल दिशा बदलते हुए उड़ती है, जिससे शत्रु हमेशा धोखे में रहता है कि वह अगले पल कहां होगी। इस तरह उड़नेवाले पक्षी पर निशाना बांधना हंसी-खेल नहीं है।
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7 comments:
अच्छी जानकारी!
बहुत मेहनत से आप अपने लेख लिखते है, इस अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद
अच्छी जानकारी धन्यवाद .
बहुत ही सुन्दर. ज्ञानवर्धन हुआ. आभार
पक्षी व्यवहार पर रोचक जानकारियां
very impressive expression in hindi with a lot of informations.Sincerity reflects in other writings also.I apprecite you.
Bahut sundar rachana..really its awesome...
Regards..
DevSangeet
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