अब इस पर हम क्या बोलें? बोलने लायक कुछ भी नही है
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तरस ही खाया जा सकता है। र्इश्वर ने जिन प्राणियों को मुक्त बनाया इंसान उन्हें भी सभ्य समाज में लाकर जबरदस्ती अपने उपयोग में लेता है और उनकी निजता भी भंग करता है।
हाथियो का मुक्त व्यवहार ये तो सरेआम .......आगे क्या कहाँ ?
मै प्रेमी आशिक आवारा .......... चित्र यही कह रहा है
इनकी प्राईवेसी भंग़ करने वालों पर तरस और देखकर हंसने वालों पर हंसी।यही ठीक रहेगा :-)
रोचकआपकी चिठ्ठी चर्चा समयचक्र में
इस पर किसी का जोर नहीं चलता। आखिर जानवर है इंसान तो नहीं।
बोलने लायक कुछ भी नही है
सहमत.....!!!!
हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट
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