Thursday, May 28, 2009

डरावने डायनोसर


डायनोसर पृथ्वी पर लाखों साल पहले रहते थे। वे आजकल के सरीसृपों (छिपकली, मगर, गोह आदि रेंगनेवाले जीवों) जैसे दिखते थे। वे अंडे देते थे। बहुत से डायनोसर कंगारू की तरह पिछली टांगों पर खड़े हो सकते थे।

डायनोसरों के युग में पृथ्वी पर अनेक प्रकार के सरीसृपों का बोलबाला था। कुछ जमीन पर विचरते थे, कुछ पक्षियों की तरह हवा में उड़ते थे और कुछ मछलियों की तरह पानी में रहते थे। जो सरीसृप जमीन पर पाए जाते थे, उन्हें ही डायनोसर कहा जाता है।

शायद डायनोसर थेकोडोन्ट नामक मांसाहारी छिपकली से विकसित हुए हैं। यह प्राणी आज से 25-30 करोड़ वर्ष पहले रहा करता था। वह छोटी छिपकलियों और कीटों को खाता था। उसके आगे की टांगें छोटी पर पीछे की लंबी और मजबूत थीं। उनके सहारे वह सीधा खड़ा हो सकता था और तेजी से दौड़ सकता था। उसकी ऊंचाई लगभग 60 सेंटीमीटर थी।



डायनोसर तरह-तरह के आकार-प्रकार के होते थे। आज से 650 लाख साल पहले ये सारी छिपकलियां एकाएक विलुप्त हो गईं। मिट्टी में दबे उनेक जीवाश्मों से ही हमें उनके बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी मिली है। अब तक वैज्ञानिकों ने डायनोसरों की 600 भिन्न-भिन्न जातियों का पता लगाया है, जिनमें से कुछ मांसाहारी थे और कुछ शाकाहारी। इसका मतलब यह नहीं है कि इतने ही डायनोसर हुआ करते थे। अनेक डायनोसरों के जीवाश्म अब तक मिले ही नहीं हैं।

मांसाहारी डायनोसरों में सबसे बड़ा और खौफनाक टिरानोसारस, यानी तानाशाह छिपकली था। उसे सबसे शक्तिशाली और खूंखार डायनोसर माना जाता है। उसकी कुल लंबाई 16 मीटर थी। केवल सिर की लंबाई डेढ़ मीटर थी। उसके विशाल जबड़े उस्तरे जैसी धारवाले दांतों से लैस थे। वह अपनी शक्तिशाली पिछली टांगों पर तेज दौड़कर अन्य डायनोसरों का शिकार करता था। उसके आगे के पैर छोटे और कमजोर थे। दौड़ते समय शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए वह अपनी भारी-भरकम पूंछ को हवा में उठाए रखता था।

सबसे बड़ा डायनोसर एक शाकाहारी प्राणी था। उसका नाम अल्ट्रासारस, यानी अति विशाल छिपकली, रखा गया है। उसकी लंबाई 35 मीटर, ऊंचाई 20 मीटर और वजन 150 टन था। इसका मतलब यह है कि अल्ट्रासारस 100 हाथियों से भी ज्यादा भारी था। उसी का निकट का संबंधी ब्राकियोसारस भी विशाल आकार का था--25 मीटर लंबा, 15 मीटर ऊंचा और 100 टन भारी।


कुछ डायनोसर विचित्र आकृति के होते थे। स्टेगोसारस की पीठ पर हड्डी के अनेक फलक एक कतार में लगे होते थे। उसकी पूंछ के सिरे पर अनेक लंबे शूल होते थे। किसी हिंसक डायनोसर द्वारा सताए जाने पर वह पूंछ को उस पर दे मारता था और शत्रु को अपने शूलों से घायल कर देता था। यदि इसके बावजूद शत्रु उस पर हमला कर दे तो स्टेगोसारस की पीठ पर लगे कठोर फलकों से उसके दांत टूट जाते थे। छेड़े न जाने पर स्टेगोसारस शांत स्वभाव का शाकाहारी प्राणी था।


ट्राइसेरोप्स नामक डायनोसर के सिर पर बैल के जैसे सींग होते थे। इनसे वह आत्मरक्षा करता था। आंकिलोसारस की पूंछ हड़्डी के एक भारी गोलक पर समाप्त होती थी। शत्रु पर वह इससे उसी प्रकार वार करता था जिस प्रकार हनुमान अपनी गदा से। पेचीसिफालोसारस एक अन्य विचित्र डायनोसर था जिसके सिर की हड्डी खूब मोटी और टोपी की तरह उभरी थी। शत्रु के पेट पर वह अपने भारी सिर को दे मारता था, जैसे जंगली बकरे करते हैं। डेनोनिक्स नामक डायनोसर की टांगों पर कटार जैसे नख होते थे जिनकी सहायता से वह शिकार को फाड़ डालता था। बैरिओनिक्स अपने घुमावदार नाखूनों से मछलियों का शिकार करता था।

वैज्ञानिकों ने डायनोसरों के विशाल आकार प्राप्त करने के पीछे अनेक कारण बताए हैं। जिस युग में डायनोसर हुए थे, तब पृथ्वी की जलवायु गरम और उमसभरी थी। मौसमी परिवर्तन बहुत कम होते थे। वनस्पति प्रचुर मात्रा में सालभर उगती थी। बड़े-बड़े वृक्षों के घने वनों से पृथ्वी अटी पड़ी थी। डायनोसरों को खाने-पीने की भरपूर सामग्री मुंह बढ़ाते ही मिल जाती थी। इसीलिए बहुत कम परिश्रम से ही खा-पीकर वे विशालकाय हो गए। डायनोसरों के विशाल आकार प्राप्त करने के पीछे एक और कारण है। हाथी आदि स्तनधारी जीवों के शरीर का विकास कुछ सालों के बाद रुक जाता है जब वे परिपक्व अवस्था में पहुंच जाते हैं। डायनोसरों का विकास तब तक होता रहता है जब तक वे जीवित रहते हैं। अतः वे आकार में बढ़ते ही जाते थे।

बड़े आकार का अनेक लाभ भी हैं। डायनोसर अनियततापी जीव थे, यानी उनके शरीर का तापमान वातावरण के तापमान के साथ-साथ घटता-बढ़ता रहता था। बड़े शरीर के प्राणी में अधिक गरमी समाती है और वह धीरे-धीरे ही ठंडा होता है। इसका लाभ यह है कि शारीरिक गरमी बड़े प्राणियों के भीतर अधिक समय तक रहती है। वे वातावरण के तापमान के उतार-चढ़ाव से कम प्रभावित होते हैं। ऊंचा शारीरिक तापमान होने पर प्राणी अधिक सक्रिय भी रह सकता है। अतः बड़े डायनोसर छोटे प्राणियों से अधिक सक्रिय रह सकते थे।

बड़े होने का एक अन्य फायदा सुरक्षा है। बहुत बड़े प्राणियों को हिंसक जीवों से कम डरना पड़ता है। अपनी गगनचुंभी ऊंचाई के कारण बड़े डायनोसर पेड़ों के ऊंचे-ऊंचे डालों पर से भी आहार जुटा सकते थे जो छोटे प्राणी नहीं कर सकते।

फिर भी यह सोचना गलत होगा कि सभी डायनोसर दैत्याकार होते थे। बहुत से डायनोसरों का कद बिल्ली के जितना ही होता था। उदाहरण के लिए कोंपसौग्नाथस नामक डायनोसर केवल 60 सेंटीमीटर लंबा और तीन किलो भारी था।

बीसियों टन वजन वाले डायनोसरों का मस्तिष्क हास्यास्पद हद तक छोटा होता था। उदाहरण के लिए स्टेगोसारस 7 मीटर लंबा और 1,700 किलो भारी था। पर उसके मस्तिष्क का वजन मात्र 100 ग्राम था।

डायनोसर एकाएक क्यों लुप्त हो गए, यह विज्ञान के सामने एक चिरस्थायी पहेली है। एक सिद्धांत के अनुसार डायनोसर स्तनधारी प्राणियों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने के कारण समाप्त हो गए। ये स्तनधारी डायनोसरों के अंडों को खा जाते थे। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि डायनोसर फूलवाले पौधों के प्रकट होने के कारण मरमिट गए। इन पौधों के बीज सख्त खोलों के अंदर रहते हैं और इसलिए डायनोसर उन्हें पचा नहीं पाते थे। यह भी कहा गया है कि अंतरिक्ष से आए उल्का पिंडों या विशाल धूमकेतुओं के पृथ्वी से टकराने या ज्वालामुखियों के फटने से डायनोसर खत्म हुए। जलवायु परिवर्तन को भी डायनोसरों के मर जाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

जो भी हो, डायनोसर थे बड़े गजब के जीव। वे हमारे मन में विस्मय और रोमांच जगाए बिना नहीं रहते।


चित्र शीर्षक (जिस क्रम में वे आए हैं)।

- टिरानोसोरस, एक विशाल मांसाहारी डायोनसर
- इयोरैप्टर, एक प्रारंभिक डायनोसर
- स्टेगोसोरस, विचित्र आकार का डायनोसर
- ट्राइसेरोप्स, बैल जैसे सींग वाला डायनोसर

4 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी जानकारी है आभार्

महेन्द्र मिश्र said...

डायनासोरों के बारे में अच्छी जानकारी दी है आपने . कभी जबलपुर में भी डायनासोर पाए जाते थे जिनके अवशेष पाए गए है और उन्हें अनुसंधान के लिए जबलपुर स्थित साइंस कालेज में रखा गया है . आभार.

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

निरंतर-महेंद्र मिश्र जी: डायनोसर के अवशेष भारत के कई हिस्सों में पाए गए हैं। यहां गुजरात में भी डायनोसरों के अंडे मिले हैं। जबलपुर के पास स्थित घुघुआ जीवाश्म उद्यान मैंने भी देखा है। वहां मुख्यतः प्राचीन पौधों के जीवाश्म मिले हैं। कुदरतनामा में कभी उन पर भी एक लेख लिखूंगा।

Udan Tashtari said...

आभार इस जानकारी का.

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