Wednesday, June 24, 2009

फोटो फीचर : बोतल-बंद पानी का दूसरा पहलू









7 comments:

विवेक रस्तोगी said...

पर ये प्लास्टिक की बोतले तो रिसाइकल्ड यूज वाली होती हैं।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

चित्र कह गए बहुत कुछ

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

रस्तोगी जी : ये बोतलें प्लास्टिक की नहीं होतीं, बल्कि सिलिकेट की होती हैं। रद्दीवाला भी इनके लिए कोई कीमत नहीं देता है। और फिर, पुनश्चक्रण (रीसाइक्लिंग)भी निरापद नहीं है, उसमें बिजली-पानी-पेट्रोल की खूब खपत होती है। जगह-जगह फेंक दिए गए बोतलों को इकट्ठा करना, उन्हें पुश्चक्रण केंद्रों में ले आना श्रम-साध्य ही नहीं, व्यय-साध्य भी है। इतनी मेहनत और खर्च के बदले इन बोतलों से जो प्राप्त हो सकता है, उसका कोई मूल्य न के बराबर है।

परमजीत सिहँ बाली said...

जो फायदे की जगह नुकसान दे रही हों, उन का इस्तमाल फिर भी नही रूक पा रहा।अजीब बात हैं।

राज भाटिय़ा said...

यह सब हमारे यहां ही हो रहा है, क्योकि हम तो आजाद है हर बात के लिये,
असल मै हर काम सिस्टम से हो तो ऎसा नाजारा देखने को ना मिले, अब यह बोतल अगर सरकार कानून बना दे कि हर पानी की बोतल पुनश्चक्रण (रीसाइक्लिंग) के नाम से १० रुपये लिये जायेगे, ओर वापिस करने पर १० रुप्ये वापिस, ओर यह बोतले फ़िर उसी कम्पनी को वापिस की जाये, ओर वो कम्पनी इन्हे टिकाने लगाये, फ़िर देखे केसे यह नाजार दिखता है.
लेकिन सबसे पहले तो जनता ही इस के विरुध जायेगी कि कोन १० रुपये दे, अगर जनता को सुध आ गई तो कम्पनियां शोर मचायेगी, फ़िर मेज के नीचे सोदा हो जायेगा.
यही वो प्रदुषाण है जो प्रकतिक का सत्यानाश कर रहा है,

Randhir Singh Suman said...

acha laga.

Science,science&science said...

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