Thursday, June 11, 2009

गैंडे को गुदगुदी होती है?


कुदरतनामा के पाठक अजय कुमार झा ने पूछा है, क्या गैंडे को गुदगुदी होती है?

सवाल दिलचस्प है। हम उसे थोड़ा सा बदल देते हैं, ताकि उत्तर दिया जा सके। गुदगुदी की जगह खुजली मान लेते हैं। कल्पना कीजिए एक गैंडे की जिसकी पीठ में जोरों की खुजली हो रही है। वह बेचारा क्या करेगा? न तो उसके लंबे नाखूनोंवाले हाथ-पैर हैं, जिनसे वह अपनी पीठ खुजा सके। उसके पैरों में उंगलियां तक नहीं हैं, बस खुर हैं। और चमड़ी भी इतनी मोटी कि खुजली मिटाने के लिए कोई साधारण नाखून पर्याप्त नहीं होंगे, अच्छा खासा इलेक्ट्रिक ड्रिल ही चाहिए होगा असर करने के लिए। और चमड़ी भी सिलवटदार, उसके मोडों में गंदगी खूब जमा होकर खुजली मचाती होगी। पर गैंडा करे भी तो क्या? हां उसकी नोंकदार सींग जरूर एक उपयोगी औजार है जिससे खुजली मिटाई जा सकती है, पर बेचारे की गर्दन इतनी छोटी है के वह सिर घुमा ही नहीं सकता। तो यह उपाय भी बेकार गया।

तो क्या करता है गैंडा जब उसकी पीठ पर होती है खुजली! आप निश्चिंत रहें, कुदरत ने अपने सभी पुत्रों के आराम की व्यवस्था की है।

खुजली मिठाने के लिए गैंडे के पास दो-एक कारगर तरीके हैं, जिसे अन्य जानवर भी आजमाते हैं। इनमें से पहला है, कीचड़-धूल में लोटना। गैंडा कीचड़-धूल में खूब लोटता है। उल्टा लेटकर अपनी पीठ को खूब रगड़ता है कीचड़ में। इससे उसे खुजली से तो राहत मिल ही जाती है, उसके पूरे शरीर पर कीचड़-धूल की एक परत भी जम जाती है। इससे खुजली लानेवाले जीव-जंतु, जैसे पिस्सू, मर जाते हैं। कुछ प्रकार की मिट्टियों में इन कीड़े-मकोड़ों को मारने की क्षमता भी पाई जाती है। आपने मिट्टी चिकित्सा के बारे में सुना होगा, गांधी जी भी इसके शौकीन थे। शायद यह चिकित्सा पद्धति गैंडे जैसे जानवरों की देखादेखी विकसित की गई है। हमने अपने जानवर मित्रों से बहुत कुछ सीखा है, मसलन, डालफिनों से पंडुब्बी बनाना, पक्षियों से उड़ना, और गैंडों से मिट्टी चिकित्सा।

खुजली मिटाने का एक दूसरा तरीका जो गैंडे, तथा अन्य जानवर, अपनाते हैं, वह है ओक्सपेकर नामक पक्षी की सहायता लेना। गैंडों और इस पक्षी के बीच आश्रित-आश्रयदाता का संबंध पाया जाता है। गैंडे जैसा खौफनाक जानवर जो शेर को भी पास फटकने नहीं देता, इस मासूम चिड़िया को अपने शरीर पर जो चाहे करने की पूरी छूट देता है। आप इस पक्षी को उसके कान से झूलते हुए या पीठ पर शान से सवारी करते हुए आम तौर पर देख सकते हैं। यह चिड़िया गैंडे के शरीर में खुजली पैदा कर रहे पिस्सू, मक्खी, कीड़े आदि को पकड़कर खाती है। इससे गैंडे को खुजली से निजात मिल जाती है, और पक्षी की पेट-पूजा भी हो जाती है।

इन दोनों के बीच के संबंध के कुछ अन्य फायदे भी हैं। गैंडे की दृष्टि कमजोर होती है। वह अपनी आंखों के आगे कुछ फुट की दूरी तक ही देख पाता है। जीवित रहने के लिए वह श्रवण और घ्राणेंद्रियों पर अधिक निर्भर करता है। लेकिन ओक्सपेकर पक्षियों की नजरें तेज होती हैं। जब वे किसी परभक्षी जानवर को देखते हैं, जैसे बाघ, तेंदुआ आदि, तो चेतावनी पुकार निकालते हुए गैंडे की पीठ से उड़ जाते हैं। इससे गैंडे को पता चल जाता है कि आसपास कहीं खतरा विद्यामान है और वह सावधान हो जाता है।

और कोई सवाल? क्या कोई जानना चाहेगा, हाथी को हंसी आती है?

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चित्र के बारे में - यह अफ्रीकी गैंडा है। आप देख सकते हैं कि इसमें दो सींग हैं, जिनमें से एक पर ओक्सपेकर चिड़िया बैठी है। एक दूसरी चिड़िया जरा पीछे गैंडे की पीठ पर बैठी है। भारतीय गैंडे में केवल एक सींग होता है। वह अफ्रीकी गैंडे से थोड़ा बड़ा होता है।

8 comments:

अजय कुमार झा said...

are sir ..badee hee adbhut jaankaaree dee aapne..mere majaak mein poochhe gaye prashn ka..bahut bahut dhanyavaad...
chaliye achha ye bhee bataa dijiye ki khatmal khoon kyun peete hain..aur ve fusfusaa kar baat karte hain ya jor jor se....

alka mishra said...

गैंडे का खुजली मिटाने का प्राकृतिक तरीका हमें पसंद आया

Alpana Verma said...

यह तो बहुत ही रोचक जानकारी है.
हाँ ,जरुर जानना चाहेंगे कि हाथी कैसे हँसता है?

[आप के ब्लॉग पर बहुत अच्छी जानकारियां हैं.]

रंजन said...

बहुत रोचक प्रसतुती..

ओम आर्य said...

ज्ञानवर्धक पोस्ट....जानकारी देने के लिये बहुत बहुत आभार

P.N. Subramanian said...

मजेदार. सुव्वर भी यही तो करते हैं.

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

सुब्रमण्य जी: हां, सूअर समेत कई जानवर खुजली मिटाने के लिए यह प्रक्रिया अपनाते हैं, यहां तक कि बाघ भी। जिम कोर्बेट ने लिखा है कि बाघ गांवों की धूल भरी सड़कों में लोटना खूब पसंद करते हैं। मैंने गधों को भी ऐसा करते देखा है, अहमदाबाद में। लोटने के बाद उन्हें इतना आनंद आता है कि वे रेंकत हुए पूरी रफ्तार से भाग निकलते हैं और काफी दूर तक भागते चले जाते हैं!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

@ बालसुब्रमण्यम
अहमदाबाद् के गधों पर एक पोस्ट अपेक्षित है| लखनऊ के ब्लॊगर इस मामले में आगे निकल चुके हैं|

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