खाने के मामले में सहमति प्राप्त करना मुश्किल होता है। जिसे कुछ लोग बड़े चाव से खाते हैं, उसका नाम भर सुन लेने से दूसरे लोगों को कय होने लगता है। फ्रांस के लोग मेंढ़क के पैरों को बड़े उत्साह से खाते हैं, पर क्या आप या मैं इस बेहूदी चीज को मुंह में लाएंगे? एक दूसरा उदाहरण गिद्ध हैं। चाहे आप जितने बड़े पेटू हों, गिद्ध के नाम से आपकी भूख हवा हो जाएगी। ''शव खानेवाले ये घिनौने पक्षी भी कहीं खाने की चीज हो सकते हैं, छि! छि! छि!'', आप घृणा से कह उठेंगे।
यही सवाल आंध्र प्रदेश के बपाटला कसबे के बांदा आदिवासियों से पूछ कर देखिए, उत्तर आपको हां में मिलेगा। उनके लिए गिद्ध वैसे ही खाने लायक चीज है जैसे हममें से कुछ लोगों के लिए मुर्गी! बांदा गिद्ध को ही नहीं, बल्कि कौए जैसे अन्य शवभोजी पक्षियों को भी खाते हैं। खाने के मामले में उनकी पसंद-नापसंद इतनी विलक्षण है कि बत्तख, क्रौंच, हंस आदि पक्षियों को, जिन्हें हम खाने योग्य मानते हैं, ये लोग छूते भी नहीं हैं। ये पक्षी इनके गांवों में खूब संख्या में पाए जाते हैं।
किसी भी गांव या शहर में गिद्ध स्थिर पंखों पर बहुत ऊंचे चक्कर काटते हुए या मरे जानवरों पर भीड़ लगाते हुए दिख जाएंगे। परंतु बपाटला के चारों ओर लगभग 50 किलोमीटर की दूरी तक आपको गिद्ध बिरले ही मिलेंगे। आपका अनुमान सही था। बांदा लोगों ने उन सबको चट कर लिया है।
मजे की बात यह है कि बांदा लोगों ने गिद्ध खाना हाल ही में शुरू किया है। पच्चीस वर्ष पहले बपाटला में भी गिद्ध अन्य जगहों के ही समान पाए जाते थे। किसी को नहीं मालूम कि इन लोगों ने गिद्धों को क्यों खाना शुरू किया।
बांदा वासी गिद्धों को बड़े-बड़े जालों में पकड़ते हैं। बहुत ही मजबूत धागे से बने और लकड़ी के चौखट पर तने ये जाल एक-साथ दस गिद्धों को पकड़ सकते हैं। जाल के छेद बैडमिंटन के जालों के छेद जितने बड़े होते हैं। चमर गिद्ध (वाइटबेक्ड वल्चर), राजगिद्ध (किंग वल्चर) और गोबर गिद्ध (स्केवेंजर वल्चर), गिद्धों की ये तीनों सामान्य जातियां इनका शिकार बनती हैं।
बांदा गिद्धों के घोंसलों से अंडों और चूजों को भी चुराते हैं। इनके लिए वे ऊंचे चट्टानों पर चढ़ जाते हैं जहां ये घोंसले होते हैं। गिद्ध इन मानव शत्रुओं से इतने डरते हैं कि उन्होंने बांदा इलाकों में घोंसला बनाना ही छोड़ दिया है। यहां पिछले दस वर्षों में एक भी घोंसला नहीं मिला है।
इस विचित्र पसंद का एक नकारात्मक पहलू भी है। बपाटला के गांवों में आपको जगह-जगह मरे जानवर पड़े-पड़े सड़ते और दुर्गंध फैलाते मिलेंगे, क्योंकि उन्हें खाने के लिए गिद्ध वहां नहीं हैं।
Thursday, September 3, 2009
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16 comments:
अन्ना, कहाँ कहाँ से ढूढ़ कर लाते हैं !
वैसे हमें तो रोहू और मटन ही जँचते हैं। मुर्गा भी उतना नहीं जँचता ;)
गिद्ध बेचारे तो पूरे भारत से विदा हो गए। ये बात तो पुरानी हो गई।
क्या बात है भी तो भारत मै गिद्ध कम हो रहे है
गजब की जानकारी है।
बड़ी ही विचित्र जानकारी है.
वाह अच्छी और अलग खबर, जानकर अच्छा लगा। काफी रोचक।
you are really the best writter.
बांदा के लोग चीन से आये हैं क्या जहाँ हर चलती हुई चीज को खाने की परंपरा है...चींटी से हाथी तक...
नीरज
Nice reading....but there are already very less Gidhs in India so why Government is not preventing these vultures?
Yeh to thik hai ki adivasi hain, par vo kaun hai jo pure Bharat ke giddha kha gaye, jaisa upar ke comments se pata chalta hai
मैं आंध्र प्रदेश में ही रहता हूं। आप विश्वास करेंगे कि यहां के लोग बिल्ली, चूहा, कबूतर,तोता, कछुआ, केंकड़ा, ऊंट और गधे को बड़े चाव से खाते हैं।
गधे को तो काटते समय उसके रक्त की एक बूंद भी जाय़ा नहीं की जाती। 100Ml गधे के खून की ग्लास आंध्र प्रदेश के कई ईलाकों में दस से चालीस रुपये तक बिकती है/ पी जाती है।
बहुत सुन्दर रचना
आभार................
Aise hee to qudrat ka samtol bigadta hai! Bada achha aalekh hai!
बाला जी क्या आप बता सकते हैं कि इस जानकारी का स्रोत्र क्या है... क्या आपने यह स्वयं देखा है या फिर इस संबंध में कहीं पढ़ा है, उस आधार पर आप बता रहे हैं ?
Excellent article.
Mujhe yeh pad kar bahu hairanee ho rahee hai. Kyukee Gidh ( Vulture) already kaafee kum ho gaye hain, pesticides or Diclofenac sodium kee vajah se. Kya aap bata sakte hain yeh Gaon konse Zile main hai AP Ke?
Badi hi vichitra jaankari hai k abhi bhi log kya kya khate hain.
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