असम के एक छोटे-से पहाड़ी गांव जटिंगा में हर साल अगस्त-अक्तूबर के दरमियान एक विचित्र एवं रहस्यमयी घटना घटती है, जिसने विश्वभर के वैज्ञानिकों को चकित कर रखा है।
कुछ विशेष परिस्थितियों में जटिंगा में रात में जलाए गए किसी भी रोशनी की ओर बीसियों पक्षी आकर्षित होकर आते हैं, कुछ-कुछ वैसे ही जैसे अन्य जगहों में दिए की ओर पतंगे आते हैं। पक्षियों के आकर्षित होने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना जरूरी हैः- अमावास की रात हो, हल्की बारिश गिर रही हो, धुंध छाया हुआ हो और हवा का बहाव दक्षिण से पश्चिम की ओर हो। पक्षियों का यह अनोखा व्यवहार केवल जटिंगा में देखा जाता है, आसपास के अन्य गांवों में नहीं।
ये पक्षी जटिंगा के स्थानीय पक्षी नहीं होते हैं और इन्हें दिन के समय में शायद ही कभी देखा जाता है। लगभग 45 जातियों के पक्षी रोशनी की ओर आकर्षण महसूस करते हैं। इनमें से अधिकांश जलपक्षी हैं। ये अपना घोंसला जमीन पर ही अथवा छिछले पानी में बनाते हैं।
इतने सारे पक्षी जटिंगा की रोशनियों की ओर खिंचाव क्यों महसूस करते हैं और केवल जटिंगा की रोशनियों की ओर ही क्यों? इसका उत्तर अब भी ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है, परंतु इसमें जटिंगा की भौगोलिक एवं मौसमी विशेषताओं और पक्षियों की नीड़न एवं प्रवसन गतिविधियों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
जटिंगा एक पठार पर स्थित है। असम के उत्तर कछार पहाड़ी जिले में स्थित यह पठार बोराइल पर्वत माला से दक्षिण-पश्चिम दिशा में निकला हुआ है। सारा क्षेत्र घने वनों से आच्छादित है और नदी-नालों और ऊबड़-खाबड़ प्रदेशों से भरा है। अगस्त-अक्तूबर के दौरान इस इलाके में भारी मानसूनी वर्षा होती है, जिसकी शुरुआत अप्रैल से ही हो जाती है सितंबर और अगस्त महीनों में तो जटिंगा में अधिकांश समय बारिश होती रहती है और आर्द्रता 85-90 प्रतिशत जितनी रहती है। लगभग निरंतर प्रबल हवाएं चलती रहती हैं। जटिंगा गहरे धुंध में समाया रहता है। आसपास के सभी निचाईवाले इलाके पानी से भर जाते हैं।
निरंतर बारिश और नीड़न स्थलों में पानी भर जाने के कारण जलपक्षियों को घोंसले त्यागकर सुरक्षित स्थानों की खोज में निकलना पड़ता है। सुरक्षित स्थानों की खोज में ये पक्षी किसी निश्चित योजना के अनुसार नहीं निकल पड़ते, जैसा कि वे प्रवास यात्रा के दौरान करते हैं। यह इस बात से स्पष्ट है कि वे पक्षी भी जो साधारणतः झुंडों में रहते हैं, जटिंगा की ओर एक-दो करके ही आते हैं।
पक्षी नदियों, घाटियों और नालों के ऊपर-ऊपर उड़ आते हैं। संभवतः ये ही सर्वाधिक सुगम मार्ग होते हैं। धुंध और बारिश के कारण वे दिग्भ्रमित हो जाते होंगे और अंधेरी रात में दिखाई पड़ने वाली किसी भी रोशनी की ओर बढ़ चलते होंगे। जटिंगा कुछ ऊंचाई पर स्थित है। इसलिए वह पक्षियों के उड़ान मार्ग में अवरोध बनकर आता होगा। खराब मौसम से परेशान पक्षी जटिंगा में पड़ाव डालने के लिए विवश हो जाते होंगे।
रोशनी की ओर पक्षियों का आकर्षण विश्व के अन्य भागों में भी देखा गया है। उदाहरण के लिए अनेक तटीय इलाकों में प्रवासी पक्षी दीपस्तंभों की प्रबल रोशनी से आकर्षित होकर उनसे टकरा जाते हैं। सुप्रसिद्ध पक्षीविद डा सलीम अली ने अपनी आत्मकथा "द फॉल ऑफ ए स्पैरो" में जर्मनी के हेलिगोलोड नामक स्थान का उल्लेख किया है जहां अक्सर ऐसे हादसे होते हैं। संभवतः जटिंगा का प्रसंग भी ऐसी ही कोई घटना है।
Wednesday, September 2, 2009
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10 comments:
Rochak evam aascharya chakit karne waalaa maamla.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Do write such kind of interesting & mysterious things about india
बहुत ही सुंदर जानकारी दी आप ने, हम ने कई बार हेलगोलेंड जाने का प्रोगराम बनाया, लेकिन जा नही पाये, यह एक छोटा सा टापू है जर्मन का, जहां एक भी कार नही चलती.
धन्यवाद
क्या चक्कर है ठीक से पता नहीं लग पाया है !
रोचक,
आप का विश्लेषण सही लगता है। बहुत बार अति न्यून प्रायिकता के ढेर सारे कारक एक ही जगह इकठ्ठे हो जाते हैं, इस प्रकार के इकठ्ठे होने की प्रायिकता भी अति न्यून होती है। ..ऐसे में इस तरह की घटनाएँ देखी जाती हैं जिन्हें आगा पीछा पूरी तरह जाने बिना समझाया नहीं जा सकता।
विचित्र किन्तु सत्य ये भी एक प्रकृति की अनबूझी पहेली है
यह ज़रूर कोतुहल का विषय है..और इस पर शोध भी हो रहे होंगे.जानकारी आश्चर्यजनक है.
रोचक जानकारी।
Reverent Sir,you gave very surprising informations about jatinga.
Shailendra Saxena "Sir"
Ascent English Coaching
Ganj Basoda. M.P. 09827249964
हैरत की बात है की विज्ञान अभी इसमें किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है.
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