Friday, July 24, 2009

सड़कों पर दौड़ते वाहनों से बिजली-निर्माण

कर्णाटक के कुछ उद्यमियों ने सड़कों पर दौड़ते वाहनों से बिजली पैदा करने की विधि विकसित की है।

वी. रवि और उसके साझेदारों ने साराक्की गांव में काम करते हुए एक ऐसा उपकरण बनाया है जिसे सड़कों के नीचे लगा देने से वह सड़क के ऊपर से गुजरनेवाले वाहनों के पहियों और सड़क के बीच घर्षण से पैदा हुई ऊर्जा को बिजली में बदल देता है। यदि किसी बड़े शहर की आम सड़क पर उनके बनाए 10 उपकरण लगाए जाएं तो एक मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है।

इस उपकरण को बढ़ावा देने के लिए उसके आविष्कारकों ने जगन्नाथ पवर रिसर्च एंड इंजिनीयरिंग नामक कंपनी भी शुरू की है। उनके अनुसार नमूने के तौर पर उन्होंने जो उपकरण बनाया है, उससे 100 हार्सपवर शक्ति पैदा की जा सकती है। उसे अधिक विकसित करने के लिए 160,000 वर्ग फुट की जमीन चाहिए, जो उनके पास फिलहाल नहीं है। इस परियोजना के एक अन्य साझेदार डी. सी. श्रीधर कहते हैं कि उन्होंने इसमें 4 लाख रुपया खर्च किया है। इससे अधिक पैसा उनके पास नहीं है।

उन्होंने कर्णाटक के मुख्यमंत्री से वित्तीय सहायता के लिए संपर्क किया है। मुख्यमंत्री ने उनके प्रस्ताव को कर्णाटक पवर कोर्पोरेशन के अध्यक्ष को भेज दिया है। अध्यक्ष ने इन उद्यमियों को प्रोत्साहित किया है, पर उन्होंने अभी वित्तीय समर्थन का आश्वासन नहीं दिया है।

रवि कहते हैं कि उन्हें सिलाई मशीन को काम करते हुए देखकर इस उपकरण का विचार आया। सिलाई मशीन के पेड़ल की धीमी चाल सुई तक पहुंचते-पहुंचते काफी गति पकड़ लेती है। इसी प्रकार उनका उपकरण वाहनों के पहियों के धीमे घूर्णन को एक अत्यंत तेज घूर्णन (5000 बार प्रति मिनट) में बदल देता है। इतने तेज घूर्णन को चुंबकीय बल से घेर देने से बिजली पैदा होती है। रवि अपने आविष्कार को धीरे-धीरे विकसित करने का इरादा रखते हैं। 5 हार्सपवर से शुरू करके वे उसकी क्षमता 100 हॉर्सपवर तक बढ़ाएंगे। उन्होंने अपना उपकरण फिलहाल श्रीनिवास नामक व्यक्ति के क्वालिटी इंजीनियरिंग नामक कारखाने में लगाया है।

9 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

एसी खोजे भारत के बाबुआें के लिए नहीं हैं...उन्हें इसकी महत्ता कहां समझ आती है...अलबत्ता एक फैशन शो करवाना हो तो देखो अभी खीस निपोरते एक्शन में आ जाएंगे

Smart Indian said...

आपने यह बहुत अच्छी खबर सुनाई. अपारंपरिक ऊर्जा का मूल्य पहचानने वाले युग में ऐसे अभिनव विचारशील प्रयोग के लिए निवेश की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.

P.N. Subramanian said...

बहुत अच्छी खबर है परन्तु हमें शंका है अकुशल सरकारी तंत्र उन्हें कोई मदद करेगा.

राजीव तनेजा said...

अच्छी खबर लेकिन लाल फीताशाही के आगे....

रंजन said...

अच्छा है.. फिर खुब गाड़ी चलाओ और घर आकर बिजली जलाओ..

Anonymous said...

काजल कुमार जी और रंजन जी का कटाक्ष बेहतरीन :-)

प्रणाली तो बढ़िया है। मैंने भी एक वाक्या देखा था ऐसे ही बच्चों के पार्क संबंधित्। फिर कभी बताऊँगा

Science Bloggers Association said...

कमाल का आइडिया है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

ऐसी अनेकों संभावनाओं पर पाश्चात्य देशों में कई बार विचार किया गया और उन्हें प्रयोग में लाकर भी देखा गया. इनमें समस्या यह है की योजना में लगनेवाले श्रम और लागत की भरपाई भी नहीं हो पाती.
मैं यह नहीं कहता की इन साधनहीन लोगों की योजनायें दोषपूर्ण हैं. यांत्रिकी और ऊर्जागतिकी के जानकार इस बात को जानते हैं की ऊर्जा को रूपांतरित करने में भी बहुत ऊर्जा लगती है इसी कारन से ऐसा करने का प्रयास नहीं किया जाता.
इतने आधुनिक युग में भी अभी तक बैटरियां गाडी चलने पर भी ठीक से चार्ज नहीं हो पाती हैं.
साइकिल में लगे डायनामो से जितनी बिजली बनती है उससे अधिक ऊर्जा उस पहिये को डायनेमो जुडा होने पर घुमाने में लगनेवाली अतिरिक्त ताकत में खप जाती है.
लेकिन ऐसे प्रयास होते रहने चाहिए क्योंकि सैद्धांतिक दृष्टि से जो चीजें अभी संभव प्रतीत नहीं होतीं वे भी एक न एक दिन सच साबित हो सकती हैं.

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर प्रयास!

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