Saturday, June 13, 2009

समुद्रों को जीत लिया है पेंग्वीन ने


पेंग्वीन अंटार्क्टिका महाद्वीप (दक्षिण ध्रुव) के तटों पर और दक्षिणी महासागर के किनारों पर पाए जाते हैं। उनकी कुछ जातियां भूमध्य रेखा तक के समुद्री इलाकों में रहती हैं। पेंग्वीन की 16 जातियां ज्ञात हैं। सबसे छोटा पेंग्वीन मात्र 30 सेंटीमीटर ऊंचा होता है और उसका वजन 1 किलो होता है। सबसे बड़ा सम्राट पेंग्वीन है जो 100 सेंटीमीटर ऊंचा और लगभग 40 किलो भारी होता है। सम्राट पेंग्वीन केवल अंटार्क्टिका में पाया जाता है। उसकी कनपटियों और गले में नारंगी रंग की चमड़ी होती है।

पेंग्वीन उड़ने की क्षमता खो चुके हैं, पर उनका शरीर समुद्री जीवन के लिए अनुकूलित हो गया है। जमीन पर वे काफी अटपटे ढंग से चलते हैं। उनके पैर शरीर के काफी पीछे लगे होते हैं और छोटे होते हैं। पंख अन्य पक्षियों के समान मोड़कर नहीं रखे जा सकते और चलते समय वे उनकी बगल से डोलते रहते हैं। ढलान उतरते समय या बर्फ पर चलते समय पेंग्वीन कई बार छाती के बल फिसलते हैं और इस तरह वे अधिक तेजी से आगे बढ़ पाते हैं।

जमीन पर उनकी चाल बेढंगी भले ही हो, पानी में वे कुशल तैराक होते हैं। उनके शरीर की बनावट इस तरह होती है कि तैरते समय वह पानी में कम-से-कम अवरोध उत्पन्न करता है। तैरने के लिए वे पंखों को चप्पू के समान चलाते हैं और झिल्लीदार उंगलियों वाले पैरों से तैरने की दिशा बदलते हैं। तैरने की रफ्तार कम करने और रुकने में भी पैर से काम लेते हैं।

पेंग्वीन के शरीर पर परों का एक मोटा आवरण होता है। ये पर अत्यंत छोटे और बालनुमा होते हैं। इनकी तीन परतें होती हैं। परों पर तेल फैला होने के कारण पेंग्वीन का शरीर जलरोधक रहता है। पेंग्वीन के शरीर की गरमी को शरीर में ही रोके रखने में भी पर मदद करते हैं। उनकी चमड़ी के नीचे चर्बी की मोटी परत होती है, जो भी उन्हें दक्षिण ध्रुव की बर्फीली ठंड से बचाती है।

पेंग्वीन की सभी जातियां समुद्रों से ही आहार प्राप्त करती हैं। कुछ पेंग्वीन पानी की सतह से मछलियां आदि पकड़ते हैं, कुछ उनके लिए गहरे पानी में डुबकी लगाते हैं। डुबकी लगाकर शिकार करने में सम्राट पेंग्वीन सबसे अधिक उस्ताद है। वह 250 मीटर गहरे पानी तक डुबकी लगा सकता है और बिना ऊपर आए पानी में 15 मिनट रह सकता है। इतनी गहराइयों में स्क्विड नामक अष्टबाहु (ओक्टोपस) जैसा प्राणी विचरता है जो सम्राट पेंग्वीन का पसंदीदा भोजन है।

प्रजननकाल में पेंग्वीन आहार ग्रहण करना बंद कर देते हैं। इसके पूर्व वे खूब खाकर चर्बी की एक मोटी परत अपने शरीर पर चढ़ा लेते हैं और प्रजननकाल में इसी पर गुजारा करते हैं। प्रजननकाल के अंत तक उनका वजन शुरू के उनके वजन का आधा रह जाता है। जो पेंग्वीन गरम इलाकों में रहते हैं, वे साल में दो बार प्रजनन करते हैं, जबकि अधिकांश अन्य जातियां केवल एक बार, वसंत ऋतु में, प्रजनन करती हैं। तब मौसम प्रजनन के लिए सर्वाधिक अनुकूल रहता है। दक्षिणी गोलार्ध में, जहां पेंग्वीन रहते हैं, वसंत ऋतु सितंबर-अक्तूबर में आती है। प्रजनन करने के लिए पेंग्वीन किसी परंपरागत प्रजनन-क्षेत्र में हर साल लौट आते हैं। यह कोई वीरान पत्थरीला टापू होता है। वहां आकर नर और मादा जोड़ा बांधते हैं। फिर दोनों कंकड़-पत्थर जोड़कर जमीन पर ही एक घोंसला बनाते हैं। उसमें मादा दो अंडे देती है। लगभग 40 दिनों तक नर और मादा उन्हें सेते हैं। चूजों की परवरिश भी दोनों मिलकर करते हैं। फरवरी-मार्च तक चूजे पर्याप्त बड़े हो जाते हैं और स्वतंत्र हो जाते हैं।

सम्राट पेंग्वीन में प्रजनन कुछ भिन्न ढंग से होता है। वह अंटार्क्टिका के बर्फीले क्षेत्रों में रहता है और सर्दी के मौसम में प्रजनन करता है। तब अंटार्क्टिका में तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है और 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार की बर्फीली हवाएं चलती हैं। पर इसकी परवाह न करते हुए नर और मादा सम्राट पेंग्वीन बड़ी तादाद में किसी भूखंड में अथवा पहाड़नुमा बर्फ की सिल्लियों में एकत्र होते हैं। वे कोई घोंसला नहीं बनाते हैं। मादा केवल एक अंडा देती है। उसे सेने की जिम्मेदारी नर की होती है। वह उसे अपने पैरों के ऊपर रख लेता है और अपने पेट की लचीली चमड़ी उसके ऊपर फैला देता है। अंडे के भीतर के चूजे को पूर्ण विकसित होने में दो महीने लगते हैं। तब तक नर किसी हठयोगी के समान पैरों पर अंडा लिए निश्चल खड़ा रहता है। चारों ओर की बर्फीली आंधियों और कंपकंपाती ठंड की वह कोई परवाह नहीं करता। अपने आपको गरम रखने के लिए बहुत से नर एक-दूसरे से सटकर खड़े हो जाते हैं। जब अंडे से चूजा प्रकट होता है तो नर और मादा मिलकर उसे मछली आदि लाकर खिलाते हैं। काफी बड़ा होने तक वे चूजे को बर्फ पर उतरने नहीं देते और उसे अपने पैरों पर ही खड़ा रखकर अपने शरीर की खाल से ढंके रखते हैं।

समुद्र में पेंग्वीनों की जिंदगी खतरों भरी होती है। तरह-तरह के सील, शार्क, कुछ प्रकार की ह्वेलें आदि उन्हें चाव से खाते हैं। उनसे बचने के लिए पेंग्वीनों के पास बस तेज तैरने का अपना कौशल ही होता है। चूंकि वे बड़े-बड़े झुंडों में समुद्रों में जाते हैं, इसलिए उन्हें अपने साथियों से थोड़ी-बहुत सुरक्षा मिल जाती है।

अनेक दृष्टियों से पेंग्वीनों के हाव-भाव मनुष्य जैसे होते हैं। मनुष्य के ही समान वे शरीर और सिर को सीधा रखकर दो पैरों पर चलते हैं। उनकी चाल भी पैर घसीटकर चल रहे मनुष्य के समान होती है। कई प्रकार के पेंग्वीनों का रंग काला-सफेद होता है, इसलिए दूर से देखने पर वे ऐसे लगते हैं मानो काला कोट और सफेद बुशर्ट पहना कोई ठिगना मनुष्य खड़ा हो। पिछली शताब्दियों के खोजी यात्रियों को पेंग्वीनों को देखकर सचमुच आदमियों का धोखा हो जाता था। इसके बारे में एक रोचक प्रसंग है। एक बार कोई जहाज एक टापू के किनारे पहुंचा। जहाज के मल्लाहों ने देखा कि टापू की ऊंची-नीची चट्टानों पर एक पूरी सेना पंक्तिबद्ध खड़ी है। मल्लाह दुविधा में पड़ गए कि टापू पर उतरें कि नहीं क्योंकि यदि टापू पर खड़ी सेना उन्हें शत्रु मान ले तो वे सब मिनटों में मारे जाएंगे। काफी देर विचार करने के बाद मल्लाहों ने यही तय किया कि सतर्क रहते हुए टापू पर उतरना चाहिए। उन्होंने नाव जहाज से नीचे उतारी और उसमें सवार होकर सावधानी से टापू की ओर बढ़ने लगे। जैसे ही वे तट के निकट पहुंचे, उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि पूरी की पूरी सेना ने एक साथ समुद्र में छलांग लगा दी है और सैनिक पागलों की तरह तैरकर दूर-दूर तक छितर गए हैं। तब जाकर उन्हें पता चला कि जिन्हें उन्होंने सैनिक मान लिया था, वे मात्र पेंग्वीन थे।

1 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

"तब तक नर किसी हठयोगी के समान पैरों पर अंडा लिए निश्चल खड़ा रहता है। चारों ओर की बर्फीली आंधियों और कंपकंपाती ठंड की वह कोई परवाह नहीं करता"

चलिए नर इस मामले में तो निठ्ल्ला नहीं है। ;) आप को एक बात और बतानी चाहिए थी: पेंग्विन लिनुक्स करनेल का ऑफिसियल logo है।

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