Monday, May 25, 2009

सीता को मोहनेवाला चीतल


भारत के मैदानी इलाकों में रहनेवाले हिरणों में चीतल का स्थान कद की दृष्टि से तीसरा है। केवल सांभर और बारहसिंघा उससे बड़े हैं। कद में छोटा होने से क्या, सुंदरता में तो चीतल इन तथा सभी अन्य हिरणों से आगे निकल जाता है। कई निष्णातों ने उसे दुनिया का सुंदरतम हिरण माना है।

चीतल का सामान्य रंग लालिमा लिए भूरा होता है, जिसमें अनेक सफेद चिकत्तियां बनी होती हैं। ये उसके नाम को सार्थक बनाती हैं। ये चिकत्तियां शरीर पर लंबाई में एक कतार में होती हैं। कहा जाता है कि लाल चमड़ी पर बनी सफेद चिकत्तियां घास और नीची झाड़ियों के बीच से चमकनेवाली सूर्य किरणों सी लगती हैं और चीतल को परभक्षी जीवों की नज़रों से बचाती हैं। परंतु यह भी सच है कि चीतल खुले में चरने वाला जीव है और परभक्षियों से छिपने की कोशिश कम करता है। उनसे बचने के लिए वह अपनी सतर्कता पर निर्भर करता है और शत्रु को दूर से ही देखकर तेजी से भाग कर अपनी रक्षा करता है। इस मामले में उसका स्वभाव वनों के निवासी सांभर और बारहसिंघे से पर्याप्त भिन्न है। ये दोनों हिरण शत्रु की नजरों से बचे रहने और लुकने-छिपने की नीति अपनाते हैं।

एक तंदुरुस्त नर चीतल की कंधे तक की ऊंचाई लगभग एक मीटर होती है और वजन 80 किलो। चीतलों को पनपने के लिए खुला जंगल और पानी की अविच्छिन्न सुविधा चाहिए। जहां जंगल घना हो या पानी दुर्लभ हो, वहां चीतल विरले ही दिखते हैं। इस कारण से चीतल असम या इसके आगे के पूर्वी इलाक़ों के घने वनों में या पंजाब, राजस्थान आदि शुष्क प्रदेशों में नहीं पाए जाते। भारत के अन्य भागों में और श्रीलंका में भी वे आसानी से दिख जाते हैं। चीतल मनुष्यों से अधिक नहीं घबराते और गांवों के आसपास बहुधा दिखाई दे जाते हैं।

चीतल के शरीर का निचला भाग, गला, पूंछ और पैरों का अंतिम हिस्सा सफेद होता है। नाक के ऊपर गाढ़े रंग की एक पट्टी होती है। नरों में शानदार शृंगाभ पाए जाते हैं, जो दो-तीन या इससे भी अधिक शाखाओं में बंटे होते हैं। शृंगाभ लालिमा लिए और औसतन 90 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। अधिकांश नर चीतल इन शृंगाभों को अगस्त में गिरा देते हैं। चौमासा समाप्त होने पर नए शृंगाभ उगने लगते हैं। ये दिसंबर तक मखमली और मुलायम रहते हैं और मार्च तक सूखकर सख्त हो जाते हैं।

चीतल का प्रजनन काल सामान्यतः अप्रैल-मई में होता है। इस समय नर शृंगाभों को उलझाकर आपस में लड़ पड़ते हैं और मादाओं को अपने कब्जे में रखने की कोशिश करते हैं। ये लड़ाइयां कई बार एक प्रतिद्वंद्वी की मौत पर आ रुकती हैं जब दूसरे के शृंगाभ उसकी छाती को भेदकर उसके फेफड़ों को फोड़ देते हैं। मादाएं छह महीने के गर्भधारण के बाद एक या दो छौनों को जन्म देती हैं।

यद्यपि चीतल के बाघ, तेंदुए और ढोल जैसे खौफनाक शत्रु हैं, पर वह इनकी मौजूदगी से बेफिक्र होकर अपनी जिंदगी का पूरा लुत्फ उठाने में मगन रहते हैं। कई बार नदियों और सोतों में रहनेवाले मगर भी इन्हें निगल जाते हैं। छौनों को अजगर, लकड़बग्घे और गीद़ड़ मार देते हैं। इन शत्रुओं से बचने के लिए प्रकृति ने चीतल के छौनों को एक अद्भुत क्षमता दी है। इनकी गंध बिलकुल नहीं होती और किसी झुरमुट में या घास में पड़े छौने को परभक्षियों को सूंघ पाना अत्यंत कठिन होता है।

चीतल अन्य हिरणों से कम निशाचर होते हैं और सुबह देर तक और शाम को चरते देखे जाते हैं। चीतलों को अन्य प्राणियों की संगत बहुत प्रिय है। वे पालतू ढोरों, बारहसिंघों, नीलगायों, सूअरों, कृष्णसारों और लंगूरों के साथ विचरते देखे जाते हैं। लंगूरों के साथ तो इनका खास रिश्ता है। जहां लंगूरों का झुंड पेड़ों पर आहार तलाश रहा हो, वहां नीचे जमीन पर चीतल भी अवश्य मिलेंगे। ये वहां लंगूरों द्वारा गिराए गए पत्ते, फूल आदि को खाने इकट्ठा होते हैं। लंगूरों की उपस्थिति से चीतलों को सुरक्षा का एहसास भी होता है। लंगूरों की दृष्टि पैनी होती है और अपने ऊंचे आसनों से वे शत्रु को दूर से ही देखकर चीतलों को चेता देते हैं।

इस सुंदर हिरण ने साहित्य और कला में भी स्थान पाया है। कहा जाता है कि सीता इसी हिरण पर मोहित हो गई थीं और राम को उसे पकड़ लाने को भेजा था। चित्रकला में भी चीतल को भरपूर सम्मान मिला है। इससे भी ज्यादा चीतल भारतीय जंगलों का एक मूल्यवान आभूषण है क्योंकि वह उनकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है।

3 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

तो वह छलिया 'स्वर्ण मृग' चीतल था !
जानकारी के लिए धन्यवाद. कुदरतनामा में भारत की वनस्पतियों के बारे में लिखें तो इस चिठ्ठे में चार चाँद लग जाँय !

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत उपयोगी जानकारी। देते रहें।

Anonymous said...

राजस्थान के अरावली पहाड़ी के जंगलों में चीतल बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं.

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