tag:blogger.com,1999:blog-6493699004068749485.post3096469817630912246..comments2023-10-17T05:35:22.462-07:00Comments on कुदरतनामा: पर्यावरण समस्या और समाधानबालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-6493699004068749485.post-8567279133392702102013-06-29T02:27:48.109-07:002013-06-29T02:27:48.109-07:00C
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यदि ह...क्या आप कोई साहित्यिक पत्रिका भी निकलते है ?<br />यदि हाँ तो आपके लिए एक सूचना है <br />अखिल भारतीय साहित्य परिषद् १२-१३ सितम्बर को राष्ट्रीय विचार की पत्रिकाओं के सम्पादकों का सम्मेलन दिल्ली में करने जा रही है कृपया अपनी पत्रिका की प्रति निम्नलिखित पते पर शीघ्र भेजें ताकि आमंत्रित किया जा सके <br /><br />राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री <br />अखिल भारतीय साहित्य परिषद् <br />राष्ट्रोत्थान न्यास भवन <br />नई सड़क ,लश्कर <br />ग्वालियर ४७४००१ (मध्यप्रदेश )Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6493699004068749485.post-27159783324859647322009-08-19T17:05:58.215-07:002009-08-19T17:05:58.215-07:00सुब्रमण्यम जी
आप इतना सारगर्भित ,उपयोगी और तेज ...सुब्रमण्यम जी <br />आप इतना सारगर्भित ,उपयोगी और तेज लिखते हैं की आप का अभिनन्दन करने को मन करता है <br />चूंकि मै कोई संस्था नहीं हूँ इसलिए आप मेरी इस टिप्पणी को ही अपना अभिनन्दन मान कर बधाई स्वीकार कीजिये शुभ कामनाओं सहितगर्दूं-गाफिलhttps://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6493699004068749485.post-71371235023596229452009-08-18T03:19:47.909-07:002009-08-18T03:19:47.909-07:00SIR,
AAJKAL GAANDHIJI JAISE LOG RAHE HI KAHAAN HAI...SIR,<br />AAJKAL GAANDHIJI JAISE LOG RAHE HI KAHAAN HAIN <br />JO ITNAA BAAREEK SOCH SAKE...........<br /><br />PRADOOSHAN K KAARAN JEENA MUHAAL HO GAYA HAI <br />AISE ME AAPKA YE AALEKH SATEEK AUR SAARTHAK <br />HAI...<br />BADHAAI !Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6493699004068749485.post-65843730934207962672009-08-17T21:21:20.733-07:002009-08-17T21:21:20.733-07:00बालसुब्रमनियम जी, आपने पर्यावरण पर बहुत अच्छी जा...बालसुब्रमनियम जी, आपने पर्यावरण पर बहुत अच्छी जानकारियाँ दी है, और मेरा मानना है कि भूतकाल में काश इस दुनिया ने पर्यावरणविदो की बात अनसुनी ना की होती तो शायद यह भयावह स्थिति आज पैदा नहीं होती! लेकिन आज जब हम दुनिया भर में इसके लिए एक दुसरे पर दोष मढ़ते है तो क्या कभी हमने खुद के स्तर पर सोचा कि हमने इसे बचाने के लिए क्या प्रयास किया ?<br /><br />एक बात जो आपने अपने लेख में छोड़ दी, और जिसे मै पिछले दस-पन्द्रह सालो में पर्यावरण के नुकशान में सबसे अधिक जिम्मेदार मानता हूँ, वह है कृषी और वन वाली भूमि में इंसानों द्बारा अप्रत्याशित रूप से कंक्रीट के जंगल बसाना ! इसके लिए ना सिर्फ बिल्डर्स और भूमाफिया अपितु आम इंसान और सरकार सबसे ज्यादा जिम्मेदार है ! क्या हमने कभी सोचा कि आज जो हम खाद्यानों की कमी से जूझ रहे है उसके लिए ये कंक्रीट के जंगल सबसे ज्यादा जिम्मेदार है ! भरष्ट नेता और भूमाफिया रातोरात करोड़पति बनने के लिए मूर्ख जनता को "एक घर हो सभी का" का नारा दे रहे है ! पर क्या आपने सोचा कि आज के युग में जब एक छोटा सा फलत भी ३० लाख से नीचे नहीं है तो एक आम आदमी उसे खरीदेगा कैसे ? वास्तविकता यह है कि हमारे ये जितने भी भरष्ट नेता, कानून के रखवाले, न्याय के मंदिरों के रखवाले और पूंजी पति है ये अपनी भरष्ट कमाई को यहाँ लगाना सबसे आसान तरीका समझते है और एक-एक की जांच की जाए तो हर एक भ्रष्ट इंसान २०-२० फ्लातो का मालिक है और फिर ऊँचे दामो पर जरुरतमंदो को बेचकर अपना घर भरता है ! क्या आज तक किसी पर्यावरण विद या आम जनता ने इस जानबूझकर सोई हुई सरकार से इसे रोकने के लिए आवाज उठाई? <br />अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि नहीं !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.com