Wednesday, July 1, 2009

मलेरिया के वाहक मच्छर



ऐसे कुछ ही लोग होंगे जो मच्छर के काटने से होने वाले मलेरिया के संत्रास से बच पाए हों। दो पंखों वाले इस छोटे से जीव को मनुष्य का सबसे अधिक खतरनाक शत्रु कहा जा सकता है। मलेरिया के रोगाणु के वाहक होने के कारण मच्छर कुल मानव मृत्यु के पचास प्रतिशत के लिए उत्तरदायी है। मच्छरदानियों, खिड़कियों की जालियों, मच्छर प्रतिरोधक क्रीमों, बिजली के कोइलों आदि के होते हुए भी इस छोटे से कीट को घर से बाहर रखना बहुत कठिन है।

मच्छर एक बहुत प्राचीन प्राणी है। मनुष्य के पृथ्वी पर आने के 50 करोड़ वर्ष पहले से वह इस धरा पर मौजूद है। उसकी 2700 से अधिक जातियां हैं। कुछ प्रकार के मच्छर छोटे हैं तो कुछ बड़े, कुछ की टांगें बहुत अधिक लंबी होती हैं।

अंबर में फंसे मच्छर का जीवाश्म

मच्छर डिप्टेरा वर्ग का प्राणी है। इस वर्ग के सदस्य कीटों की दुनिया में सबसे अधिक कुशल उड़ाकू माने जाते हैं। हेलिकोप्टर की तरह मंडराना, तेजी से ऊंची उड़ान भरना और यहां तक कि रिवर्स गियर में, यानी पीछे की ओर, उड़ना, सभी वे जानते हैं। हममें से अधिकांश लोगों को उनकी उड़ने की कुशलता का प्रत्यक्ष अनुभव निश्चय ही रहा होगा। कितनी ही बार हमने इस उपद्रवी जीव को दोनों हथेलियों के बीच कुचल डालने की कोशिश की है। तब हथेलियों के आपस में टकराने की आवाज चारों ओर गूंज उठती है और साथ-साथ हाथों में तनिक सी पीड़ा भी होती है--आवेश में आकर हम कभी-कभी हाथ कुछ ज्यादा ही जोर से बजा देते हैं--पर हथेलियों में मरे हुए मच्छर को खोजने पर हमें निराशा ही हाथ लगती है, हथेलियों के एक-दूसरे से टकराने से पहले ही मच्छर वहां से उड़ चुका होता है। उड़ने में मच्छर इतना कुशल है कि तेज से तेज बारिश में भी वह बिना भीगे उड़ता रह सकता है--बारिश की बूंदें उस पर गिरे इससे पहले ही वह अपनी जगह बदल लेता है।

अधिकांश लोग इस बात से सहमत होंगे कि दुनिया की सबसे अप्रिय एवं कर्णकटु ध्वनि मच्छर की भिनभिनाहट है। यह आवाज उसके पंखों के फड़फड़ाने से होती है। उसके पंख 500-600 बार प्रति सेंकड की रफ्तार से फड़फड़ाते हैं।

जो मच्छर घरों में घुस कर हमारी नींद हराम करता है, वह असल में मादा होता है। नर मच्छर वनस्पतियों का रस पीते हुए शाकाहारी जीवन व्यतीत करता है। मादा को खून इसलिए पीना पड़ता है क्योंकि उसे अंडे पैदा करने के लिए अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता होती है। चमड़ी को भेदने और शरीर में से खून चूसने के लिए मच्छर का मुंह खास तरह से विकसित होता है। मच्छर विविध प्रकार के प्राणियों से खून चूसता है। इन अभागे प्राणियों में चींटी, सरीसृप, पक्षी, बड़े स्तनपायी और मानव शामिल हैं। मच्छर गाढ़े रंगों, शरीर की गरमी और आर्द्रता, शरीर के हिलने-डुलने और सांस लेते समय उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड के जरिए अपने शिकार को खोज निकालता है। एक बार जब मेजबान मिल जाता है तो मच्छर उसकी चमड़ी पर बैठ जाता है और अपने मुख के इंजेक्शन की सुईनुमा पोले हिस्सों को उसके रक्त वाहिकाओं में गढ़ा देता है। जैसे ही रक्त वाहिकाओं से रक्त बाहर निकलना शुरू होता है, वह उसे चूसकर ऊपर खींच लेता है, उसी प्रकार जैसे हम स्ट्रॉ की सहायता से शरबत पीते हैं। रक्त का थक्का न जमने पाए इसके लिए वह रक्त के साथ अपनी थूक मिला देता है। उसकी थूक में खून को जमने से रोकने वाले पदार्थ होते हैं। मच्छर के काटने पर जो भयंकर खुजली और सूजन होता है, उसका कारण खून में मिलाई गई उसकी यह थूक ही होती है।

सभी जातियों के मच्छरों में से केवल एनोफिलीज जाति के मच्छर मलेरिया फैलाते हैं। मेजबान के रक्त को जमने से रोकने के लिए जब वह रक्त में अपनी थूक मिलाता है, तब उस थूक में मौजूद मलेरिया के परजीवी भी खून में मिल जाते हैं। ये परजीवी मच्छर के शरीर में तब पहुंचते हैं जब वह किसी मलेरिया के मरीज का खून पीता है। रक्त वाहिकाओं में खून के साथ बहते हुए ये परजीवी यकृत में पहुंच जाते हैं और वहां बढ़ने लगते हैं। कुछ दिनों बाद यकृत उनसे भर जाता है और उसके कार्य करने में दिक्कत आने लगती है। परजीवी यकृत से समय-समय पर बाहर निकल आकर रक्त धाराओं में पुनः प्रवेश करते रहते हैं और रक्त की लाल कोशिकाओं में घुस जाते हैं। इन कोशिकाओं के अंदर उनका फिर से पुनरुत्पादन होने लगता है, जिससे लाल रक्त कोशिकाएं भर जाती हैं और फूट जाती हैं। सामान्यतः बहुत सारी लाल रक्त कोशिकाएं एक-साथ फूटती हैं और इससे शरीर का तापमान तेजी से बढ़ने लगता है और कुछ घंटों के लिए पसीना निकलने लगता है। फिर तेजी से तापमान गिरने लगता है। मलेरिया के दौरान बारी-बारी से पसीना निकलना और झुरझुरी छूटने का यही रहस्य है।

मलेरिया का इलाज निरंतर कठिन बनता जा रहा है। मलेरिया लाने वाले परजीवी अब मलेरिया दूर करने की लगभग सभी दवाओं के प्रति सहनशील हो गए हैं। उधर मच्छर भी उन्हें मारने के लिए उपयोग किए जाते डीडीटी आदि अनेक कीटनाशकों को सहने की क्षमता विकसित कर गए हैं।

वयस्क मच्छर हवा में समागम करते हैं। इसके बाद मादा 200 से 400 तक अंडों वाले गुच्छे पानी की सतह पर देती है। तालाब, पोखर, दलदल आदि ठहरे हुए जलक्षेत्र उसके प्रजनन स्थल होते हैं। दो या तीन दिन के बाद प्रत्येक अंडा डिंभक में बदल जाता है। डिंभक बहुत सक्रिय तैराक होता है। कुछ ही दिनों में वह कोषस्थ अवस्था में चला जाता है। जब यह अवस्था पूरी हो जाती है तो पंखधारी वयस्क मच्छर उभरता है। अपने संपूर्ण जलजीवन में यह जीव पानी की सतह पर ही रहता है और अपने शरीर में स्थित छोटी नलिकाओं के द्वारा वातावरण में से आक्सीजन प्राप्त कर सांस लेता रहता है। इसलिए मच्छरों को मारने का एक आसान तरीका घर के आसपास के ठहरे हुए जलों में तेल उड़ेलना है। तेल जल के ऊपर फैल जाता है और मच्छरों के डिंभकों को सांस लेने से रोकता है, जिससे वे मर जाते हैं। अंडे से वयस्क होने तक के कायांतरण का सारा काम कुछ ही दिनों में संपन्न हो जाता है। मादा मच्छर का जीवनकाल एक माह का होता है, जबकि नर का यही कोई एक सप्ताह का। मच्छर प्रदूषित पानी में भी आसानी से पैदाइश जारी रख सकते हैं।

यद्यपि मच्छरों का संत्रास अनेक लोगों को भुगतना पड़ता है, फिर भी वे प्रकृति में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करते हैं। कीटविज्ञानियों का मानना है कि यदि मच्छर न रहे तो बहुत से छोटे-बड़े प्राणियों को भूखों मरना पड़ेगा, क्योंकि मच्छरों के अंडे, डिंभक आदि उनके मुख्य भोजन स्रोत हैं।

4 comments:

Satish Saxena said...

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सादर

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

सतीश जी, बहुत आभार।

राज भाटिय़ा said...

खुन पीने का काम यह मादा ही करती है ? नर तो बेचारा खाने पीने की जुगाड मै ही भिन भिनाता रहता है...
बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने धन्यवाद

shruti said...

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